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NCERT Solutions For Class 7 Hindi (Malhar) Chapter 8 Birju Maharaj Se Sakshatkaar 2025-26

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How to Write Stepwise Answers for Hindi Chapter 8 Birju Maharaj Se Sakshatkaar

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How to Write Stepwise Answers for Hindi Chapter 8 Birju Maharaj Se Sakshatkaar

पाठ से


मेरी समझ से


(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सबसे सही उत्तर कौन-सा है ? उनके सामने तारा (★) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।


प्रश्न 1.
बिरजू महाराज ने गंडा बाँधने की परंपरा में परिवर्तन क्यों किया होगा ?


  • वे गुरु के प्रति शिष्य के निष्ठा भाव को परखना चाहते थे।

  • वे नृत्य शिक्षण के लिए परंपरा को महत्वपूर्ण नहीं मानते थे।

  • वे नृत्य के प्रति शिष्य के लगन व समर्पण भाव को जाँचना चाहते थे।

  • वे शिष्य की भेंट देने की सामर्थ्य को परखना चाहते थे।


उत्तर:

  • वे नृत्य के प्रति शिष्य के लगन व समर्पण भाव को जाँचना चाहते थे। (★)


वे नृत्य के प्रति शिष्य के लगन व समर्पण भाव को जाँचना चाहते थे। (★)


प्रश्न 2.
“जीवन में उतार चढ़ाव तो होता ही है ।” बिरजू महाराज के जीवन में किस तरह के उतार-चढ़ाव आए?

  • पिता के देहांत के बाद आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा।

  • कोई भी संस्था नृत्य प्रस्तुतियों के लिए आमंत्रित नहीं करती थी।

  • किसी समय विशेष में घर में सुख- समद्धि थी।

  • नृत्य के औपचारिक प्रशिक्षण के अवसर बहुत ही सीमित हो गए थे।


उत्तर:

  • पिता के देहांत के बाद आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा। (★)


प्रश्न 3.
बिराजू महाराज के अनुसार बच्चों को लय के साथ खेलने की अनुशंसा क्यों की जानी चाहिए?

  • संगीत, नृत्य, नाटक और सभी कलाएँ बच्चों में मानवीय मूल्यों का विकास नहीं करती हैं।

  • कला संबंधी विषयों से जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

  • कला भी एक खेल है, जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

  • वर्तमान समय में कला भी एक सफल माध्यम नहीं है।


उत्तर:

  • कला संबंधी विषयों से जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। (★)


(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए और कारण बताइए कि अपने ये उत्तर ही क्यों चुनें?

उत्तर: (1) मैंने इस विकल्प को इसलिए चुना है क्योंकि बिरजू महाराज गंडा बाँधने को केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं मानते थे। वे पहले अपने शिष्य की लगन, निष्ठा और समर्पण को परखते थे। जब उन्हें विश्वास हो जाता था कि शिष्य पूरी तरह योग्य है, तभी वे उसे गंडा बाँधते थे। उनकी दृष्टि में यह परंपरा अत्यंत पवित्र थी और वे इसे बेहद ईमानदारी से निभाते थे।


(2) मैंने यह विकल्प इसलिए चुना है क्योंकि बिरजू महाराज ने बचपन से लेकर युवावस्था तक जीवन में अनेक कठिन परिस्थितियों का सामना किया। यद्यपि उनका परिवार पहले समृद्ध था, लेकिन पिता के देहांत के बाद आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। फिर भी उन्होंने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद अपने कला-कर्म को निष्ठा के साथ जारी रखा और नृत्य के प्रति अपने जुनून को कभी कम नहीं होने दिया।


(3) इस विकल्प को चुनने का मेरा कारण यह है कि बिरजू महाराज नृत्य को एक बौद्धिक कला मानते थे। उनका विश्वास था कि नृत्य, गीत-संगीत जैसी कलाएँ बच्चों के मानसिक और बौद्धिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए वे हमेशा बच्चों को इन कलाओं से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे।


मिलकर करें मिलान


पाठ में से चुनकर कुछ शब्द एवं शब्द समूह नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें इनके सही संदर्भों या अवधारणाओं से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।


शब्द

अर्थ या वर्णन

1. कर्नाटक संगीत शैली

भारत की प्राचीन गायक‐वादन संगीत परंपरा का महत्वपूर्ण अंग है। इसमें रागों की अधिकता होती है और नियमों व शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

2. पखावज

भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक वाद्य, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत में प्रचलित है। इसमें बलद तालों की प्रधानता होती है। भरतनाट्यम, वीणा, मृदंग, मंडोलिन आदि वाद्यों में इसका संगत किया जाता है।

3. शास्त्रीय संगीत

हिंदू शास्त्रों के 16 संस्कारों पर आधारित यह संगीत परंपरा बेहद व्यवस्थित और तारतम्य से जुड़ी होती है।

4. हिंदुस्तानी संगीत शैली

हिंदुस्तानी संगीत का एक प्रमुख रूप, जो उत्तर भारत में प्रचलित है। इसमें संगीत-नृत्य की विशिष्ट शैली विकसित हुई है। धीमी-तेज़ लय और तालों के माध्यम से इसे प्रस्तुत किया जाता है।

5. कलेक्शन

किसी क्षेत्र विशेष में लोक-नृत्य, परंपरागत नृत्य, रीति-रिवाज़ और संस्कृति के अनुसार तैयार किया गया संग्रह। इसमें त्यौहारों, मेलों और अवसरों के अनुसार गीत-संग्रह शामिल होते हैं।

6. लोक नृत्य

भारतीय पारंपरिक नृत्य शैली, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत में प्रचलित है। इसका प्रयोग त्योहारों, मेलों और सामाजिक समारोहों में किया जाता है। इसके प्रमुख रूपों में कुमाऊँनी, बिहारी, बंगाली, गुजराती आदि नृत्य सम्मिलित हैं।


उत्तर:
1. – 2
2. – 6
3. – 1
4. – 4
5. – 3
6. – 5


शीर्षक


• इस पाठ का शीर्षक ‘बिरजू महाराज से साक्षात्कार’ है। यदि आप इस साक्षात्कार को कोई अन्य नाम देना चाहते हैं तो क्या नाम देंगे? आपने यह नाम क्यों सोचा? लिखिए।


इस पाठ का शीर्षक ‘बिरजू महाराज से साक्षात्कार’ है। यदि आप इस साक्षात्कार को कोई अन्य नाम देना चाहते हैं तो क्या नाम देंगे? आपने यह नाम क्यों सोचा? लिखिए।


उत्तर: यदि इस साक्षात्कार को मुझे कोई और शीर्षक देना होता, तो मैं ‘पद्मविभूषण बिरजू महाराज’ नाम चुनता। इसका कारण यह है कि पद्मविभूषण भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है, जो विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट और अद्वितीय योगदान के लिए प्रदान किया जाता है।


बिरजू महाराज ने कथक नृत्य के क्षेत्र में असाधारण और अमूल्य योगदान दिया है, इसी कारण उन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुआ। इसलिए मुझे लगता है कि इस साक्षात्कार को यह शीर्षक देना बिल्कुल उपयुक्त और सार्थक होगा।


पंक्तियों पर चर्चा


साक्षात्कार में से चुनकर कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार लिखिए ।

  • “तुम नौकरी में बँट जाओगे। तुम्हारे अंदर का नर्तक पूरी तरह पनप नहीं पाएगा।”

  • “लय हम नर्तकों के लिए देवता है । “

  • “नृत्य में शरीर, ध्यान और तपस्या का साधन होता है ।”

  • “कथक में गर्दन को हल्के से हिलाया जाता है, चिराग की लौ के समान ।”


उत्तर:

नृत्य एक ऐसी साधना है जिसमें निरंतर अभ्यास, पूर्ण समर्पण और गहरी एकाग्रता की आवश्यकता होती है। यह एक पूर्णकालिक विधा है, इसलिए यदि कोई व्यक्ति आजीविका के लिए किसी नौकरी जैसा पूर्णकालिक कार्य अपना ले, तो नृत्य के प्रति उतनी लगन और प्रतिबद्धता बनाए रखना कठिन हो जाता है, जितनी अपेक्षित है।


जैसे देवता की आराधना में पूरी निष्ठा, समर्पण और श्रद्धा चाहिए होती है, वैसे ही नृत्य में लय को अत्यंत पवित्र माना जाता है। नर्तक लय को देवता समान मानकर उसकी साधना करते हैं।


क्योंकि नृत्य शरीर के माध्यम से अभिव्यक्त होता है, इसलिए इसमें तपस्या और ध्यान दोनों अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इसी कारण शरीर को साधना और ध्यान का माध्यम कहा गया है।

जिस तरह दीपक की लौ धीरे-धीरे, सुंदर और स्थिर लय में जलती है, उसी प्रकार कथक नृत्य में कलाकार अपनी गर्दन को अत्यंत कोमलता, संतुलन और मधुरता के साथ हिलाता है, जो इस नृत्य की विशेषता है।


सोच-विचार के लिए


प्रश्न 1.
साक्षात्कार को एक बार पुनः पढ़िए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।


(क) बिरजू महाराज नृत्य का औपचारिक प्रशिक्षण आरंभ होने से पहले ही कथक कैसे सीख गए थे?

उत्तर:

बिरजू महाराज के घर में कथक का वातावरण स्वाभाविक रूप से बना हुआ था। उनके पिता और दोनों चाचा कथक नृत्य के कलाकार थे, इसलिए औपचारिक शिक्षण शुरू होने से पहले ही बिरजू महाराज उन्हें देखकर-देखकर कथक सीखने लगे थे।


(ख) नृत्य सीखने के लिए संगीत की समझ होना क्यों अनिवार्य है?


उत्तर: नृत्य सीखने के लिए संगीत की समझ होना जरूरी है, क्योंकि संगीत में मौजूद लय ही नृत्य को गति और सुंदरता देती है। लय नृत्य का ऐसा आधार है जो उसकी प्रस्तुति को संतुलित और आकर्षक बनाती है। यदि नर्तक को सुर और ताल का ज्ञान होगा, तो वह आसानी से समझ सकेगा कि उसके नृत्य की लय सही है या उसमें सुधार की आवश्यकता है।


(ग) नृत्य के अतिरिक्त बिरजू महाराज को और किन-किन कार्यों में रुचि थी ?


उत्तर: नृत्य के अलावा बिरजू महाराज को मशीनों और यंत्रों में भी गहरी दिलचस्पी थी। उन्हें किसी भी मशीन को खोलकर उसके भीतर के कल-पुर्ज़े देखने में मज़ा आता था। उनके ब्रीफ़केस में अक्सर पंखा या फ्रिज ठीक करने वाले उपकरण मिल जाते थे। इसके साथ ही उन्हें चित्रकला यानी पेंटिंग करने का शौक भी था।


(घ) बिरजू महाराज ने बच्चों की शिक्षा और रुचियों के बारे में अभिभावकों से क्या कहा है?


उत्तर: बिरजू महाराज का मानना है कि यदि बच्चे में रुचि हो, तो उसे लय के साथ खेलने और प्रयोग करने की पूरी स्वतंत्रता देनी चाहिए। इस तरह के खेल में संतुलन, तालमेल और समय का सही उपयोग बच्चे के बौद्धिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


वे यह भी कहते हैं कि हर बच्चे के पास शिक्षा के साथ कोई न कोई कौशल या कला अवश्य होनी चाहिए, ताकि वह भविष्य में आत्मनिर्भर बन सके। कोई भी हुनर ऐसा ख़ज़ाना है जिसे कोई छीन नहीं सकता और ज़रूरत पड़ने पर यह हमेशा सहायक सिद्ध होता है।


प्रश्न 2.

पाठ में से उन प्रसंगों की पहचानकर उन पर चर्चा कीजिए, जिनसे पता चलता है कि-


(क) बिरजू महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।

उत्तर:

बिरजू महाराज के घर में स्वाभाविक रूप से कथक का वातावरण था। उनके पिता और चाचा सभी कथक नर्तक थे, इसलिए औपचारिक प्रशिक्षण शुरू होने से पहले ही उन्होंने उन्हें देखकर कथक सीख लिया था और नवाब के दरबार में प्रस्तुतियाँ भी देने लगे थे।


नृत्य के साथ ही वे गाना और वाद्य बजाना भी जानते थे। वे नृत्य नाटिकाएँ तैयार करते और उनके लिए संगीत भी स्वयं बनाते थे। उन्होंने अपने परिवार की कथक परंपरा को बनाए रखते हुए प्रस्तुति शैली में नया अंदाज़ जोड़ा। टैगोर, त्यागराज और कई आधुनिक कवियों की रचनाओं पर भी उन्होंने कथक की नई प्रस्तुतियाँ तैयार कीं।


बहुत छोटी उम्र में ही उन्होंने तबला बजाना शुरू कर दिया था। उनके चाचा ने उनके हाथ की कला और लय की समझ को पहचानकर उन्हें तबला सीखने के लिए प्रेरित किया। पाँच वर्ष की उम्र तक वे हारमोनियम भी बजाने लगे थे। उन्हें फ़िल्मी गीतों पर गाना और नृत्य करना भी बेहद पसंद था, और परिवार ने उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया।


मशीनों को समझने और ठीक करने में भी उनकी रुचि थी। वे पंखा, फ्रिज़ जैसे उपकरण स्वयं ही ठीक कर लेते थे। वे मज़ाक में कहते थे कि अगर मैं नर्तक न होता, तो शायद इंजीनियर बन जाता।


अपनी बेटी और दामाद से प्रभावित होकर उन्हें पेंटिंग बनाने का भी शौक हो गया था। जब भी उनका मन होता, वे प्रेम से चित्रकारी करते थे।


अपनी बेटी और दामाद से प्रभावित होकर उन्हें पेंटिंग बनाने का भी शौक हो गया था। जब भी उनका मन होता, वे प्रेम से चित्रकारी करते थे।


(ख) बिरजू महाराज को नृत्य की ऊँचाइयों तक पहुँचाने में उनकी माँ का बहुत योगदान रहा।


उत्तर:  संघर्ष के दिनों में बिरजू महाराज की माँ हमेशा उनकी सबसे बड़ी सहारा बनी रहीं। पिता के निधन के बाद जब आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो गई, तब माँ-बेटे ने अत्यंत कठिन हालातों में जीवन बिताया। वे पुरानी ज़रीदार साड़ियों को जलाकर उनमें से निकले सोने-चाँदी के धागे बेचते थे ताकि कुछ आमदनी हो सके। नृत्य कार्यक्रमों से कभी-कभी थोड़े पैसे मिल जाते थे, लेकिन कई बार ऐसा भी होता था कि दिन में केवल एक बार ही भोजन मिल पाता था।


फिर भी उनकी माँ ने उनका मनोबल कभी टूटने नहीं दिया। वे हमेशा प्रेरित करतीं और कहतीं—
“खाना चाहे चना मिले या कुछ और, पर अभ्यास कभी मत छोड़ना।”


(ग) बिरजू महाराज महिलाओं के लिए समानता के पक्षधर थे।


उत्तर: बिरजू महाराज की बहनों को कथक सीखने का अवसर नहीं मिला, लेकिन उन्होंने अपनी बेटियों को पूरा कथक प्रशिक्षण दिया। उनका मानना था कि लड़कियों के पास शिक्षा के साथ कोई न कोई कौशल अवश्य होना चाहिए, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। वे इस विचार के समर्थक थे कि जैसे लड़कों को समान अवसर मिलते हैं, वैसे ही लड़कियों को भी शिक्षा और हुनर विकसित करने के बराबर अवसर मिलने चाहिए।


शब्दों की बात


(क) पाठ में आए हुए कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं, इन्हें ध्यान से पढ़िए-


क्रमांक

शब्द

1

आधुनिक

2

सीमित

3

प्रशिक्षण

4

सुगमता

5

आधुनिक

6

पारंपरिक

7

भारतीय

8

सामूहिक

9

शास्त्रीय


आपने इन शब्दों पर ध्यान दिया होगा कि मूल शब्द के आगे या पीछे कोई शब्दांश जोड़कर नया शब्द बना है। इससे शब्द के अर्थ में परिवर्तन आ गया है। शब्द के आगे जुड़ने वाले शब्दांश उपसर्ग कहलाते हैं, जैसे कि—


आपने इन शब्दों पर ध्यान दिया होगा कि मूल शब्द के आगे या पीछे कोई शब्दांश जोड़कर नया शब्द बना है। इससे शब्द के अर्थ में परिवर्तन आ गया है। शब्द के आगे जुड़ने वाले शब्दांश उपसर्ग कहलाते हैं, जैसे कि—


अदृश्य – अ + दृश्य

आवरण- आ + वरण

प्रशिक्षण – प्र + शिक्षण

यहाँ पर ‘अ’, ‘आ’, ‘प्र’ उपसर्ग हैं।

शब्द के पीछे जुड़ने वाले शब्दांश प्रत्यय कहलाते हैं और मूल शब्द के अर्थ में नवीनता, परिवर्तन या विशेष प्रभाव उत्पन्न करते हैं, जैसे कि—


शब्द के पीछे जुड़ने वाले शब्दांश प्रत्यय कहलाते हैं और मूल शब्द के अर्थ में नवीनता, परिवर्तन या विशेष प्रभाव उत्पन्न करते हैं, जैसे कि—


सीमित – सीमा + इत

सुंदरता – सुंदर + ता

भारतीय भारत + इय

सामूहिक – समूह + इक

यहाँ पर ‘इत’, ‘ता’, ‘ईय’, और ‘इक’ प्रत्यय हैं।


उत्तर: (विद्यार्थी पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 106–107 पढ़कर उपसर्ग और प्रत्यय के बारे में जानकारी प्राप्त करें।)


(ख) नीचे दो तबले हैं एक में कुछ शब्दांश (उपसर्ग व प्रत्यय) हैं, दूसरे तबले में मूल शब्द हैं। इनकी सहायता से नए शब्द बनाइए- 


(ख) नीचे दो तबले हैं एक में कुछ शब्दांश (उपसर्ग व प्रत्यय) हैं, दूसरे तबले में मूल शब्द हैं। इनकी सहायता से नए शब्द बनाइए-


उत्तर:

मार्मिक, आगमन, राष्ट्रीय, खंडित, श्रमिक, सांस्कृतिक, अकर्म, सुकर्म, अनाम, असाधरण ।


(ग) इस पाठ में से उपसर्ग व प्रत्यय की सहायता से बने कुछ और शब्द छाँटकर उनसे वाक्य बनाइए।


उत्तर: विद्यार्थी यह कार्य स्वयं पूरा करेंगे।


शब्दों का प्रभाव


• पाठ में आए नीचे दिए गए वाक्य पढ़िए-


पाठ में आए नीचे दिए गए वाक्य पढ़िए-


प्रश्न 1.

“ कुछ कथिक डर गए किंतु उन कथिकों की कला में इतना दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उन कथिकों के कथक में मग्न हो गए।” इस वाक्य में रेखांकित शब्द ‘इतना’ हटाकर वाक्य पढ़िए और पहचानिए कि क्या परिवर्तन आया है?

पाठ में आए हुए वाक्यों में से ऐसे ही कुछ और शब्द ढूँढ़कर उन्हें रेखांकित कीजिए जिनके प्रयोग से वाक्य में विशेष प्रभाव उत्पन्न होता है ?


उत्तर: 

वाक्य में ‘इतना’ शब्द के प्रयोग से भाव अधिक प्रभावशाली और गहरा बन जाता है।

अन्य उदाहरण—


  • जिन डिब्बों में कभी तीन–चार लाख रुपये के कीमती हार रखे रहते थे, वे अब खाली पड़े थे।

  • भेंट मिलने के बाद ही मैं गंडा बाँधूँगा।

  • कई वर्षों तक नृत्य सिखाने के बाद जब मुझे शिष्य की सच्ची लगन दिखाई देती है, तभी मैं गंडा बाँधता हूँ।

  • यदि तुम नौकरी में उलझ गए, तो तुम्हारे भीतर का नर्तक पूरी तरह विकसित नहीं हो पाएगा।

  • हुनर वह संपत्ति है जिसे कोई छीन नहीं सकता और जो समय आने पर हमेशा सहायता करती है।

पाठ से आगे


कला का संसार


(क) बिरजू महाराज – ” कथक की पुरानी परंपरा को तो कायम रखा है। हाँ, उसके प्रस्तुतीकरण में बदलाव किए हैं। ” इस कथन को ध्यान में रखते हुए लिखिए कि कथक की प्रस्तुतियों में किस प्रकार के परिवर्तन आए हैं?

उत्तर: बिरजू महाराज ने कथक की पारंपरिक परंपराओं को बनाए रखते हुए अपने परिवार के नर्तकों की भाव–भंगिमाओं को भी अपनी शैली में सम्मिलित किया। साथ ही उन्होंने विभिन्न भाषाओं के आधुनिक कवियों की रचनाओं पर भी कथक की नई प्रस्तुतियाँ तैयार कीं। इस प्रकार उन्होंने परंपरा को संरक्षित रखते हुए नए प्रयोगों के माध्यम से कथक की प्रस्तुति में मौलिक बदलाव किए।


(ख) लोकनृत्य और शास्त्रीय नृत्य में क्या अंतर है? लिखिए ।

(इस प्रश्न के उत्तर के लिए आप अपने सहपाठियों, अभिभावकों, शिक्षकों, पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता भी ले सकते हैं ।)


उत्तर: 

लोकनृत्य

  • लोकनृत्य किसी विशेष क्षेत्र की परंपराओं और संस्कृति से गहराई से जुड़े होते हैं।

  • ये सामान्यतः सरल और अनौपचारिक होते हैं, तथा इनकी प्रस्तुति आम लोग उत्साह से करते हैं।

  • लोकनृत्य मनोरंजन का माध्यम हैं और अक्सर त्योहारों, मेलों तथा पारिवारिक समारोहों में प्रस्तुत किए जाते हैं।

शास्त्रीय नृत्य


  • शास्त्रीय नृत्य पारंपरिक, सुव्यवस्थित और निश्चित नियमों के अनुसार किए जाते हैं।

  • इन्हें सीखने और प्रस्तुत करने के लिए विशेष प्रशिक्षण व निरंतर अभ्यास आवश्यक होता है।

  • शास्त्रीय नृत्य आध्यात्मिक, भावपूर्ण होते हैं और निश्चित राग-ताल के साथ प्रस्तुत किए जाते हैं।

उदाहरण

  • लोकनृत्य: भांगड़ा (पंजाब), गरबा (गुजरात), लावणी (महाराष्ट्र)

  • शास्त्रीय नृत्य: भरतनाट्यम (तमिलनाडु), ओडिसी (ओडिशा), कथक (उत्तर भारत)


(ग) “बैरगिया नाला जुलुम जोर,

नौ कथिक नचावें तीन चोर ।

जब तबला बोले धीन – धीन,

तब एक-एक पर तीन-तीन ।”

इस पाठ में हरिया गाँव में गाए जाने वाले उपर्युक्त पद का उल्लेख है । आप अपने क्षेत्र में गाए जाने वाले किसी लोकगीत को कक्षा में प्रस्तुत कीजिए ।


उत्तर:

यह अवध क्षेत्र में गाया जाने वाला एक पारंपरिक होली का टोली गीत है—

होली खेलें रघुबीरा,
अवध में होली खेलें रघुबीरा।
सिया के हाथों में सुनहरी पिचकारी,
लक्ष्मण के हाथों में अबीर—
अवध में होली खेलें रघुबीरा।


साक्षात्कार की रचना


प्रस्तुत पाठ की विधा ‘साक्षात्कार’ है। सामान्यतः इसे बातचीत या भेंटवार्ता का पर्याय मान लिया जाता है, लेकिन यह भेंटवार्ता से इस संदर्भ में भिन्न है कि इसका एक निश्चित उद्देश्य और ढाँचा होता है। यह साक्षात्कार किसी नौकरी या पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए होने वाले साक्षात्कार से बिलकुल भिन्न है। प्रस्तुत साक्षात्कार एक प्रकार से व्यक्तिपरक साक्षात्कार है। इसका उद्देश्य साक्षात्कारदाता के निजी जीवन, उनके कामकाज, उपलब्धियों, रुचि अरुचि, विचारों आदि को पाठकों के सामने लाना है। किसी भी प्रकार के साक्षात्कार के लिए पर्याप्त तैयारी, संवेदनशीलता और धैर्य की आवश्यकता होती है। साक्षात्कार की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि साक्षात्कारदाता के संदर्भ में कितना शोध किया गया है और प्रश्न किस प्रकार के बनाए गए हैं।


प्रस्तुत पाठ की विधा ‘साक्षात्कार’ है। सामान्यतः इसे बातचीत या भेंटवार्ता का पर्याय मान लिया जाता है, लेकिन यह भेंटवार्ता से इस संदर्भ में भिन्न है कि इसका एक निश्चित उद्देश्य और ढाँचा होता है। यह साक्षात्कार किसी नौकरी या पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए होने वाले साक्षात्कार से बिलकुल भिन्न है। प्रस्तुत साक्षात्कार एक प्रकार से व्यक्तिपरक साक्षात्कार है। इसका उद्देश्य साक्षात्कारदाता के निजी जीवन, उनके कामकाज, उपलब्धियों, रुचि अरुचि, विचारों आदि को पाठकों के सामने लाना है। किसी भी प्रकार के साक्षात्कार के लिए पर्याप्त तैयारी, संवेदनशीलता और धैर्य की आवश्यकता होती है। साक्षात्कार की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि साक्षात्कारदाता के संदर्भ में कितना शोध किया गया है और प्रश्न किस प्रकार के बनाए गए हैं।


प्रस्तुत ‘साक्षात्कार’ के आधार पर बताइए –


(क) साक्षात्कार से पहले क्या – क्या तैयारियाँ की गई होंगी?

उत्तर:

सबसे पहले बिरजू महाराज से संबंधित आवश्यक जानकारियाँ जुटाई गई होंगी।
उनके निवास स्थान, उपलब्ध होने का समय, और साक्षात्कार के लिए वे कितना समय दे पाएँगे—इन सबकी जानकारी विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त करके साक्षात्कार का समय तय किया गया होगा।

इसके बाद प्रश्नों की एक सूची तैयार की गई होगी। फिर चर्चा कर उन प्रश्नों का चयन किया गया होगा, जो साक्षात्कार के उद्देश्य को सबसे बेहतर तरीके से पूरा कर सकें।


(ख) आप इस साक्षात्कार में और क्या – क्या प्रश्न जोड़ना चाहेंगे?


उत्तर: मैं इस साक्षात्कार में कुछ अतिरिक्त प्रश्न शामिल करना चाहूँगा, ताकि बिरजू महाराज की शिक्षा-दीक्षा, उनके बचपन और युवावस्था के मित्रों, तथा उनके भोजन संबंधी पसंद-नापसंद के बारे में अधिक जानकारी मिल सके। इसके अलावा, देश-विदेश की वर्तमान परिस्थितियों पर उनके विचार जानना भी मेरे लिए महत्वपूर्ण होगा।


(ग) यह साक्षात्कार एक सुप्रसिद्ध कलाकार का है। यदि आपको किसी सब्जी विक्रेता, रिक्शा चालक, घरेलू सहायक या सहायिका का साक्षात्कार लेना हो तो आपके प्रश्न किस प्रकार के होंगे?


उत्तर: यदि मैं किसी सब्जी विक्रेता का साक्षात्कार करता, तो मैं उससे ऐसे प्रश्न पूछता—उसका दिन किस तरह शुरू होता है, वह सब्ज़ियाँ कैसे चुनता है, खड़े होकर बेचने में ज़्यादा लाभ होता है या घूम-घूमकर बेचने में, उसे अपने काम में किन-किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, उसकी रोज़ की आमदनी कितनी हो जाती है, वह अपने काम से संतुष्ट है या कभी-कभी इसे छोड़ने का मन करता है, और वह कितने बजे तक घर लौट पाता है।


इसी प्रकार, रिक्शा चालक या घरेलू सहायिका का साक्षात्कार लेते समय उनके काम और निजी दिनचर्या से जुड़े ऐसे ही प्रश्न पूछे जा सकते हैं।


सृजन


आपके विद्यालय में कथक नृत्य का आयोजन होने जा रहा है।


(क) आप दर्शकों को कथक नृत्यकला के बारे में क्या-क्या बताएँगे? लिखिए।

उत्तर:

  • प्रस्तुत किए जाने वाले कथक नृत्य की शैली और प्रकार के बारे में जानकारी दी जाएगी।

  • नृत्य के माध्यम से दर्शाई जाने वाली कहानी और उसकी मुख्य थीम का वर्णन किया जाएगा।

  • नृत्य प्रस्तुत करने वाले कलाकारों तथा उनके साथ कार्य करने वाले सहयोगियों का परिचय कराया जाएगा।

  • यदि प्रस्तुति में किसी विशेष पक्ष पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता हो, तो उससे संबंधित जानकारी भी उपलब्ध कराई जाएगी।

(ख) इस कार्यक्रम की सूचना देने के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए ।


उत्तर: सम्मानित अतिथियों, अभिभावकों, शिक्षकों और प्रिय विद्यार्थियों को यह बताते हुए हमें अत्यंत हर्ष हो रहा है कि 12 अप्रैल 2025 को दोपहर 2:30 बजे, संत कबीर विद्यालय के वाटिका सभागार में कक्षा 10 की प्रतिभाशाली छात्रा कुमारी हार्दिका बंसल द्वारा कथक नृत्य की विभिन्न शैलियों की एक मनमोहक प्रस्तुति दी जाएगी।

आप सभी से विनम्र निवेदन है कि समय पर पधारकर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाएँ और विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन करें।

संपर्क हेतु:
संत कबीर विद्यालय प्रशासन, नई दिल्ली
फ़ोन : 989744600


(ग) यदि इस नृत्य कार्यक्रम में कोई दृष्टिबाधित दर्शक है और वह नृत्य का आनंद लेना चाहे तो इसके लिए विद्यालय की ओर से क्या व्यवस्था की जानी चाहिए?


उत्तर: दृष्टिबाधित दर्शकों के लिए विद्यालय ऑडियो विवरण की सुविधा उपलब्ध करा सकता है, जिसमें नृत्य की भाव-भंगिमाओं, मुख्य भावना और संगीत का विस्तार से वर्णन किया जाए।

नृत्य प्रस्तुति से पहले या बाद में, दृष्टिबाधित दर्शकों को ब्रेल लिपि में तैयार नृत्य मुद्राओं और गतिविधियों के विवरण को स्पर्श करके महसूस करने का अवसर दिया जा सकता है।

उनके लिए विशेष बैठने की व्यवस्था भी की जा सकती है, जैसे—ध्वनि प्रणाली के नज़दीक विशेष सीटों की व्यवस्था, ताकि वे कार्यक्रम का बेहतर अनुभव प्राप्त कर सकें।


आज की पहेली


“अगर नर्तक को सुर-ताल की समझ है तो वह जान पाएगा कि यह लहरा ठीक नहीं है, इसके माध्यम से नृत्य अंगों में प्रवेश नहीं करेगा । ” संगीत में लय को प्रदर्शित करने के लिए ताल का सहारा लिया जाता है। किसी भी गीत की पंक्तियों में लगने वाले समय को मात्राओं द्वारा ठीक उसी प्रकार मापा जाता है, जैसे दैनिक जीवन में व्यतीत हो रहे समय को हम सेकेंड के द्वारा मापते हैं। ताल कई मात्रा समूहों का संयुक्त रूप होता है।


संगीत के समय को मापने की सबसे छोटी इकाई मात्रा है और ताल कई मात्राओं का संयुक्त रूप है। जिस तरह घंटे में मिनट और मिनट में सेकेंड होते हैं, उसी तरह ताल में मात्रा होती है। आज हम आपके लिए ताल से जुड़ी एक अनोखी पहेली लाए हैं।


एक विद्यार्थी ने अपनी डायरी में अपने विद्यालय के किसी एक दिन का उल्लेख किया है। उस उल्लेख में संगीत की कुछ तालों के नाम आए हैं। आप उन तालों के नाम ढूँढ़िए-


एक विद्यार्थी ने अपनी डायरी में अपने विद्यालय के किसी एक दिन का उल्लेख किया है। उस उल्लेख में संगीत की कुछ तालों के नाम आए हैं। आप उन तालों के नाम ढूँढ़िए-


कल हमारे विद्यालय में संगीत और नृत्य की एक सुंदर सभा आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में कुल चार कलाकार आए थे। उनमें से एक कलाकार का नाम रूपक और दूसरे का नाम लक्ष्मी था। बाकी दो कलाकारों के नाम ज्ञात नहीं हो सके।


जब वे दोनों मंच पर प्रस्तुति देने आए, तो उन्होंने दर्शकों से पूछा—
“तिलवाड़ा, दादरा या झूमरा?”

दर्शकों ने उत्तर दिया—
“इनमें से कोई नहीं। हमें दीपचंदी और कहरवा अधिक पसंद हैं।”

दर्शकों की यह इच्छा सुनते ही दोनों कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति आरंभ कर दी।


अब नीचे दी गई शब्द पहेली में से संगीत की उन तालों के नाम ढूँढ़कर लिखिए-


अब नीचे दी गई शब्द पहेली में से संगीत की उन तालों के नाम ढूँढ़कर लिखिए-


उत्तर:


अब नीचे दी गई शब्द पहेली में से संगीत की उन तालों के नाम ढूँढ़कर लिखिए-


  1. रूपक

  2. लक्ष्मी

  3. दादरा

  4. झूमरा

  5. तिलवाड़ा

  6. दीपचंदी

  7. कहरवा


झरोखे से


नृत्य की छटाएँ


बिरजू महाराज ने भारत के कई राज्यों में प्रचलित शास्त्रीय नृत्यों का उल्लेख किया है। आइए, इन्हें थोड़ा और समझते हैं—


भरतनाट्यम – यह भारत की सबसे प्राचीन नृत्य शैलियों में से एक है। इसका नाम ‘भरतमुनि’ और ‘नाट्यम’ शब्दों के संयोजन से बना माना जाता है। कुछ विद्वान ‘भरत’ शब्द को भाव, राग और ताल का प्रतीक भी मानते हैं। इस नृत्य की उत्पत्ति तमिलनाडु में मंदिरों में प्रस्तुत किए जाने वाले एकल नृत्य रूप ‘सादिर’ से मानी जाती है।


यह भारत की सबसे प्राचीन नृत्य शैलियों में से एक है। इसका नाम ‘भरतमुनि’ और ‘नाट्यम’ शब्दों के संयोजन से बना माना जाता है। कुछ विद्वान ‘भरत’ शब्द को भाव, राग और ताल का प्रतीक भी मानते हैं। इस नृत्य की उत्पत्ति तमिलनाडु में मंदिरों में प्रस्तुत किए जाने वाले एकल नृत्य रूप ‘सादिर’ से मानी जाती है।


कथकली – दक्षिण भारत के एक राज्य के मंदिरों में रामायण और महाभारत की कथाओं पर आधारित दो लोक नाट्य परंपराएँ—रामानाट्टम और कृष्णानाट्टम—कथकली की मूल प्रेरणा मानी जाती हैं। यह नृत्य शैली संगीत, नृत्य और अभिनय का अद्भुत संगम है।


प्रसिद्ध मलयाली कवि वी. एन. मेनन ने राजा मुकुंद के संरक्षण में इस कला का व्यापक प्रचार-प्रसार किया। यह नृत्य मुख्य रूप से पुरुष कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इसकी कहानियाँ प्रायः महाकाव्यों और पुराणों से ली जाती हैं।


कथकली की विशेषता इसकी समृद्ध भाव-भंगिमाएँ, चेहरे की सूक्ष्म अभिव्यक्तियाँ और आँखों व भौहों की सटीक लयात्मक गति है, जो सम्पूर्ण प्रस्तुति को अद्वितीय बनाती हैं।


कथकली की विशेषता इसकी समृद्ध भाव-भंगिमाएँ, चेहरे की सूक्ष्म अभिव्यक्तियाँ और आँखों व भौहों की सटीक लयात्मक गति है, जो सम्पूर्ण प्रस्तुति को अद्वितीय बनाती हैं।


कथक – ब्रजभूमि की रासलीला से विकसित यह एक प्राचीन और परंपरागत नृत्य शैली है। ‘कथक’ शब्द ‘कथिक’ से निकला है, जिसका अर्थ है—कहानी सुनाने वाला।

प्राचीन समय में ये कथिक महाकाव्यों के पद और छंदों को संगीत, नृत्य और भाव-भंगिमाओं के साथ प्रस्तुत करते थे।


कथक की एक प्रमुख विशेषता इसके विभिन्न घरानों का विकास है। इसके अलावा, कथक में जुगलबंदी विशेष आकर्षण रखती है, जिसमें तबलावादक और नर्तक ताल-लय के रोचक और प्रतिस्पर्धात्मक खेल को प्रस्तुत करते हैं।


कथक की एक प्रमुख विशेषता इसके विभिन्न घरानों का विकास है। इसके अलावा, कथक में जुगलबंदी विशेष आकर्षण रखती है, जिसमें तबलावादक और नर्तक ताल-लय के रोचक और प्रतिस्पर्धात्मक खेल को प्रस्तुत करते हैं।


कुचिपुड़ी – आंध्र प्रदेश में प्रचलित यह भारतीय शास्त्रीय नृत्य एक पारंपरिक और समृद्ध शैली है। इसकी प्रस्तुति सामान्यतः प्रार्थना से शुरू होती है, जिसके बाद नृत्य और अभिनय का सुंदर मेल प्रस्तुत किया जाता है।


इस नृत्य में कर्नाटक संगीत की संगत दी जाती है। कुचिपुड़ी की प्रस्तुति का समापन प्रायः तरंगम के बाद होता है, जो इसकी विशिष्ट और आकर्षक विशेषता मानी जाती है।


इस नृत्य में कर्नाटक संगीत की संगत दी जाती है। कुचिपुड़ी की प्रस्तुति का समापन प्रायः तरंगम के बाद होता है, जो इसकी विशिष्ट और आकर्षक विशेषता मानी जाती है।


मणिपुरी नृत्य – पौराणिक कथाओं के अनुसार इस नृत्य की उत्पत्ति मणिपुर की घाटियों में शिव, पार्वती और स्थानीय गंधर्वों द्वारा किए गए दैवीय नृत्य से मानी जाती है। राज्य के महत्वपूर्ण उत्सव ‘लाई हरोबा’ में इस नृत्य का विशेष रूप से प्रदर्शन किया जाता है।


आम तौर पर यह नृत्य महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इसमें चेहरे की अभिव्यक्ति कम और हाथों के कोमल हावभाव तथा पैरों की लयात्मक गति अधिक महत्त्वपूर्ण होती है, जो इसकी विशिष्ट पहचान है।


आम तौर पर यह नृत्य महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इसमें चेहरे की अभिव्यक्ति कम और हाथों के कोमल हावभाव तथा पैरों की लयात्मक गति अधिक महत्त्वपूर्ण होती है, जो इसकी विशिष्ट पहचान है।


ओडिसी नृत्य – नाट्यशास्त्र में वर्णित ‘सोदा नृत्य’ से ओडिसी नृत्य-शैली का नाम संबंधित माना जाता है। इसकी कुछ भाव–मुद्राएँ भरतनाट्यम से समानता रखती हैं।


इस नृत्य का मुख्य आकर्षण है त्रिभंग मुद्रा, जिसमें शरीर को तीन स्थानों पर सुंदर ढंग से मोड़ा जाता है। प्रस्तुति के दौरान शरीर का निचला भाग अधिकतर स्थिर रहता है, जबकि ऊपरी धड़ लय और ताल के अनुसार सुंदर गति करता है।


इस नृत्य का मुख्य आकर्षण है त्रिभंग मुद्रा, जिसमें शरीर को तीन स्थानों पर सुंदर ढंग से मोड़ा जाता है। प्रस्तुति के दौरान शरीर का निचला भाग अधिकतर स्थिर रहता है, जबकि ऊपरी धड़ लय और ताल के अनुसार सुंदर गति करता है।


मोहिनीअट्टम – भारत की आठ शास्त्रीय नृत्य शैलियों में से एक मोहिनीअट्टम की उत्पत्ति केरल राज्य में हुई है। इसकी प्रमुख विशेषता है इसकी मुलायम, घुमावदार और कोमल आंगिक अभिव्यक्तियाँ। इस नृत्य में अभिनय, विशेषकर चेहरे की भाव-भंगिमाएँ और हस्त मुद्राएँ, सबसे अधिक महत्त्व रखती हैं।


इस नृत्य में नर्तकियाँ पारंपरिक परिधान पहनती हैं, जिसे ‘मुंडू’ कहा जाता है। परंपरागत रूप से मोहिनीअट्टम केवल महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, जबकि कथकली का प्रदर्शन मुख्यतः पुरुष कलाकार करते हैं।


इस नृत्य में नर्तकियाँ पारंपरिक परिधान पहनती हैं, जिसे ‘मुंडू’ कहा जाता है। परंपरागत रूप से मोहिनीअट्टम केवल महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, जबकि कथकली का प्रदर्शन मुख्यतः पुरुष कलाकार करते हैं।


साझी समझ


अभी आपने शास्त्रीय नृत्यों को निकटता से जाना समझा। पाँच-पाँच विद्यार्थियों के समूह में भारत के लोक नृत्यों की सूची बनाइए और उनकी विशिष्टताओं का पता लगाइए।


नीचे दिए गए भारत के मानचित्र में राज्यानुसार शास्त्रीय एवं लोक नृत्य दर्शाइए।


नीचे दिए गए भारत के मानचित्र में राज्यानुसार शास्त्रीय एवं लोक नृत्य दर्शाइए।


उत्तर: यह गतिविधि कक्षा में विद्यार्थियों के विभिन्न समूहों द्वारा स्वयं पूरी की जाएगी।


NCERT Solutions for Class 7 Hindi Chapter 8 Birju Maharaj Se Sakshatkaar (2025-26) – Quick Summary

इस पाठ से आप कथक की परंपरा और बिरजू महाराज के जीवन-संघर्ष को करीब से समझ सकते हैं। एनसीईआरटी के सही उत्तर पढ़कर आपकी परीक्षा तैयारी मजबूत हो जाएगी।


अभ्यास सवालों को हल करते समय लय और अनुशासन जैसे कीवर्ड्स पर ध्यान दें। हर टिपिकल प्रश्न पर फोकस करने से आपको NCERT Solutions Chapter 8 Birju Maharaj Se Sakshatkaar से जुड़े सभी पहलू स्पष्ट होंगे।


पाठ में दिए महत्वपूर्ण अंश और प्रमुख अवधारणाएँ रिवाइज करना न भूलें! इससे न सिर्फ आपकी कक्षा 7 हिंदी परीक्षा में स्कोरिंग आसान होगी, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।

FAQs on NCERT Solutions For Class 7 Hindi (Malhar) Chapter 8 Birju Maharaj Se Sakshatkaar 2025-26

1. What are NCERT Solutions for Class 7 Hindi Chapter 8 Birju Maharaj Se Sakshatkaar?

The NCERT Solutions for Class 7 Hindi Chapter 8 Birju Maharaj Se Sakshatkaar provide accurate, stepwise answers for all textbook questions, helping students prepare thoroughly for exams. These solutions offer:

  • Detailed explanations based on CBSE marking scheme
  • Coverage of intext, back exercise, and exemplar questions
  • Support for exam revision and improving answer structure

2. How do I write stepwise NCERT answers in Hindi to score full marks in CBSE exams?

To score full marks, structure your answers stepwise as per NCERT Solutions for Hindi:

  • Begin with a clear, direct statement answering the question
  • Use key terms and phrases from the chapter (Birju Maharaj Se Sakshatkaar)
  • For long answers, write in points or short paragraphs for clarity
  • Include examples or supporting details only if asked
  • Follow CBSE marking guidelines for length and keywords

3. Are diagrams or definitions mandatory in Class 7 Hindi Chapter 8 answers?

Diagrams are generally not required in most Hindi literature chapters, unless specified in the question. However:

  • Use definitions where questions ask for meaning or explanation
  • In language-based questions, focus on word meanings, uses, and examples

4. Which questions are most likely to come from Birju Maharaj Se Sakshatkaar in school exams?

Questions from Birju Maharaj Se Sakshatkaar often cover:

  • Short and long answer questions on main events of the chapter
  • Important definitions or terms mentioned in the text
  • Questions on values, themes, and personal responses related to Birju Maharaj's life and work
  • Extract-based questions from dialogue or narrative

5. Where can I download the NCERT Solutions PDF for Class 7 Hindi Chapter 8?

The NCERT Solutions PDF for Class 7 Hindi Chapter 8 (Birju Maharaj Se Sakshatkaar) is available for free download on trusted educational websites. Steps:

  • Visit a CBSE-aligned platform with Class 7 Hindi resources
  • Locate Chapter 8 NCERT Solutions PDF
  • Click the download link for offline study

6. How should I structure long answers for Birju Maharaj Se Sakshatkaar to get better marks?

For long answers in Class 7 Hindi Chapter 8, follow this format:

  • Begin with a direct introduction or summary sentence
  • Use 2-3 well-structured paragraphs or bullet points
  • Include key details, supporting examples, and relevant definitions
  • Conclude with a short statement linking to the question's core idea

7. What are the key topics and themes covered in NCERT Solutions Chapter 8 Birju Maharaj Se Sakshatkaar?

The main topics and themes of Chapter 8 Birju Maharaj Se Sakshatkaar include:

  • Biography and achievements of Pandit Birju Maharaj
  • His contribution to Kathak dance and Indian culture
  • Life values, dedication, and inspiration for students
  • Major events and turning points in Birju Maharaj's life

8. How can I revise Class 7 Hindi Chapter 8 quickly before exams?

To quickly revise Birju Maharaj Se Sakshatkaar before exams:

  • Read bullet point summaries and key definitions from revision notes
  • Practice with stepwise NCERT Solutions for all exercises
  • Attempt important questions and MCQs for the chapter
  • Take a quick flashcard test of major terms and events

9. Are NCERT Solutions enough for Class 7 Hindi exams?

NCERT Solutions are sufficient for CBSE Class 7 Hindi exams if you understand the concepts and answer structure. To score well:

  • Focus on conceptual clarity and stepwise presentation
  • Revise using additional revision notes or important questions for extra practice

10. How to present long answers to match CBSE marking?

Always start with a direct answer, followed by detailed points or examples. To match CBSE marking:

  • Highlight keywords and definitions
  • Keep your answer clear, well-structured, and within the word limit
  • Summarise with a strong concluding sentence

11. What are the most important topics from this chapter?

The most important topics from Birju Maharaj Se Sakshatkaar are:

  • Biography and dance contributions of Birju Maharaj
  • His dedication and achievements
  • Impact of Kathak on Indian art and culture
  • Value-based questions on inspiration and perseverance

12. Do examiners award partial marks for correct steps even if the final answer is wrong?

Yes, CBSE examiners often give partial marks if you write correct steps or explanations even when the final answer is incomplete or slightly incorrect. To maximise marks:

  • Always show your work or reasoning stepwise
  • Include key points and terms in your answer