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NCERT Solutions For Class 12 Chemistry Chapter 14 Biomolecules in Hindi - 2025-26

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Solved NCERT Questions For Class 12 Chemistry Chapter 14 In Hindi - Free PDF

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Access NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 14 – जैव-अणु

1.मोनोसैकेराइड क्या होते हैं? 

उत्तर : वे कार्बोहाइड्रेट जो छोटे अणुओं में जल – अपघटित नहीं हो सकते, मोनोसैकेराइड कहलाते हैं।

2.अपचायी शर्करा क्या होती है?

उत्तर : कार्बोहाइड्रेट जो टॉलेन अभिकर्मक को अपचयित करते हैं तथा फेहलिंग विलयन के साथ लाल अवक्षेप देते हैं, अपचायी शर्कराएँ कहलाते हैं। सभी मोनोसैकेराईड (ऐल्डोस तथा कीटोस) तथा डाइसैकेराइड (सुक्रोस को छोड़कर) अपचायी शर्कराएँ हैं।

3. पौधों में कार्बोहाइड्रेटों के दो मुख्य कार्यों को लिखिए।

उत्तर : (i) पादप कोशिका भित्तियों का संरचनात्मक पदार्थ 

उदाहरणार्थ :

पॉलीसैकेराइड सेलुलोस पादप कोशिका भित्ति का प्रमुख संरचनात्मक पदार्थ होता है।

(ii) जैव ईंधन (Bio fuels) कार्बोहाइड्रेट जैसे :

ग्लूकोस, फ्रक्टोस, शर्करा, स्टार्च तथा ग्लाइकोजन जैव ईंधनों के रूप में कार्य करते हैं तथा जैव तन्त्रों में विभिन्न कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं।

उदाहरणार्थ :

\[{{\text{C}}_{\text{6}}}{{\text{H}}_{\text{12}}}{{\text{O}}_{\text{6}}}\text{+6}{{\text{O}}_{\text{2}}}\to \text{6C}{{\text{O}}_{\text{2}}}\text{+6}{{\text{H}}_{\text{2}}}\text{O+2880kJ}\]

4. निम्नलिखित को मोनोसैकेराइड तथा डाइसैकेराइड में वर्गीकृत कीजिएराइबोस, 2-डिऑक्सीराइबोस, माल्टोस, गैलेक्टोस, फ्रक्टोस तथा लैक्टोस

उत्तर :

1.मोनोसैकेराइड :राइबोस, 2-डीऑक्सीराइबोस, गैलेक्टोस, तथा फ्रक्टोस।

2.डाइसैकेराइड :माल्टोस तथा लैक्टोस।

5. ग्लाइकोसाइडी बन्ध से आप क्या समझते हैं?

उत्तर : दो मोनोसैकेराइड अणु परस्पर ऑक्सीजन आबन्ध द्वारा जुड़े होते हैं जिसका निर्माण जल के अणु की हानि से होता है। दो मोनोसैकेराइड इकाइयों के मध्य ऑक्सीजन से होकर आबन्ध ग्लाइकोसाइडिक आबन्ध कहलाते हैं।

उदाहरणार्थ :

माल्टोस अणु में ग्लाइकोसाइडिक आबन्ध नीचे प्रदर्शित है-

माल्टोस अणु में ग्लाइकोसाइडिक आबन्ध दर्शाते हुए


माल्टोस अणु में ग्लाइकोसाइडिक आबन्ध दर्शाते हुए


6. ग्लाइकोजन क्या होता है तथा ये स्टार्च से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर : जन्तुओं के शरीर में कार्बोहाइड्रेट ग्लाइकोजन के रूप में संचित रहता हैं। इसे जन्तु स्टार्च भी कहते हैं, क्योंकि इसकी संरचना ऐमाइलोपेक्टिन के समान होती है, लेकिन यह इससे अत्यधिक शाखित होता है। यह यकृत तथा पेशियों में संचित रहता है। जब हमारे शरीर को ग्लूकोस की आवश्यकता होती है तब एन्जाइम ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में परिवर्तित कर देते हैं। दूसरी ओर, स्टार्च ऐमाइलोस (15-20%) जो कि जल में विलेय होता है तथा ऐमाइलोपेक्टिन (80-85%) जो कि जल में अविलेय होता है का मिश्रण होता है। ग्लाइकोजन तथा ऐमाइलोपेक्टिन दोनों α -D.ग्लूकोस के शाखित बहुलक होते हैं। स्टार्च पौधों का प्रमुख संचित पॉलीसैकेराइड होता है।

7. (अ) सुक्रोस तथा

(ब) लैक्टोस के जल-अपघटन से कौन-से उत्पाद प्राप्त होते हैं?

उत्तर :

(अ) सुक्रोस जल :

अपघटित होकर 1-अणु ग्लूकोस तथा 1-अणु फ्रक्टोस देता है।

\[{{C}_{12}}{{H}_{22}}{{O}_{11}}+{{H}_{2}}O\xrightarrow{Invertase,{{H}_{3}}{{O}^{+}}}{{C}_{6}}{{H}_{12}}{{O}_{6}}\text{+}{{C}_{6}}{{H}_{12}}{{O}_{6}}\]

(ब) लैक्टोस जल :

अपघटित होकर D-ग्लूकोस तथा D-गैलेक्टोस का सममोलर मिश्रण देता है।

\[{{C}_{12}}{{H}_{22}}{{O}_{11}}+{{H}_{2}}O\xrightarrow{lactose,{{H}_{3}}{{O}^{+}}}{{C}_{6}}{{H}_{12}}{{O}_{6}}\text{+}{{C}_{6}}{{H}_{12}}{{O}_{6}}\]

8.स्टार्च तथा सेलुलोस में मुख्य संरचनात्मक अन्तर क्या है?

उत्तर : स्टार्च ऐमिलोस तथा ऐमिलोपेक्टिन से मिलकर बनता है। ऐमिलोस α – D -ग्लूकोस का रेखीय बहुलक होता है, जबकि सेलुलोस β – D-ग्लूकोस का रेखीय बहुलक होता है। ऐमिलोस में एक ग्लूकोस इकाई का C-1 अन्य ग्लूकोस इकाई के C-4 से α – ग्लाइकोसाइडी बन्ध द्वारा जुड़ा रहता है। इसे अग्रांकित चित्र में देखा जा सकता है

ग्लूकोस इकाई का C-1 अन्य ग्लूकोस इकाई के C-4 से α – ग्लाइकोसाइडी बन्ध दर्शाते हुए


ग्लूकोस इकाई का C-1 अन्य ग्लूकोस इकाई के C-4 से α – ग्लाइकोसाइडी बन्ध दर्शाते हुए


सेलुलोस दर्शाते हुए


सेलुलोस दर्शाते हुए


सेलुलोस, β – D -ग्लूकोस से बनी ऋजु शृंखलायुक्त पॉलिसैकेराइड है जिसमें एक ग्लूकोस इकाई के C-1 तथा दूसरी ग्लूकोस इकाई के C-4 के मध्य β ग्लाइकोसाइडी बन्ध बनता है।

9. क्या होता है जब D-ग्लूकोस की अभिक्रिया निम्नलिखित अभिकर्मकों से करते हैं?
(i) HI

(ii) ब्रोमीन जल

(iii) $HNO_3$.

उत्तर :

(i)

D-ग्लूकोस की अभिक्रिया HI के साथ दर्शाते हुए


D-ग्लूकोस की अभिक्रिया HI के साथ दर्शाते हुए


(ii)

D-ग्लूकोस की अभिक्रिया   ब्रोमीन जल के  साथ दर्शाते  हुए


D-ग्लूकोस की अभिक्रिया   ब्रोमीन जल के  साथ दर्शाते  हुए


(iii)

D-ग्लूकोस की अभिक्रिया $HNO_3$ के साथ दर्शाते हुए


D-ग्लूकोस की अभिक्रिया $HNO_3$ के साथ दर्शाते हुए


10. ग्लूकोस की उन अभिक्रियाओं का वर्णन कीजिए जो इसकी विवृत श्रृंखला संरचना के द्वारा नहीं समझाई जा सकतीं।

उत्तर: निम्नलिखित अभिक्रियाएँ ग्लूकोस की विवृत श्रृंखला संरचना के द्वारा नहीं समझाई जा सकती हैं, इन्हें बॉयर ने प्रस्तावित किया था

1.ऐल्डिहाइड समूह उपस्थित होते हुए भी ग्लूकोस 2 , 4 – DNP परीक्षण तथा शिफ़-परीक्षण नहीं देता एवं यह $NaHSO_3$ के साथ हाइड्रोजन सल्फाइड योगज उत्पाद नहीं बनाता।

2.ग्लूकोस का पेन्टाऐसीटेट, हाइड्रॉक्सिलऐमीन के साथ अभिक्रिया नहीं करता जो मुक्त —CHO समूह की अनुपस्थिति को इंगित करता है।

3.जब D-ग्लूकोस को शुष्क हाइड्रोजन क्लोराईड गैस की उपस्थिति में मेथेनॉल के साथ अभिकृत कराया जाता है, तब यह दो समावयव मोनोमेथिल व्युत्पन्न देता है जिन्हें मेथिल -α – D-ग्लूकोसाइड तथा मेथिल β-D-ग्लूकोसाइड के नाम से जाना जाता है। ये ग्लूकोसाइड फेहलिंग विलयन को अपचयित नहीं करते तथा हाइड्रोजन सायनाइड अथवा हाइड्रॉक्सिलऐमीन के साथ अभिक्रिया नहीं करते हैं तथा मुक्त -CHO समूह की अनुपस्थिति को इंगित करते हैं।

11.आवश्यक तथा अनावश्यक ऐमीनो अम्ल क्या होते हैं? प्रत्येक प्रकार के दो उदाहरण दीजिए।

उत्तर :

(i) आवश्यक ऐमीनो अम्ल :

ऐमीनो अम्ल जिनकी आवश्यकता मानव स्वास्थ्य तथा वृद्धि के लिए होती है, लेकिन इनका संश्लेषण मनुष्य के शरीर में नहीं होता है, आवश्यक ऐमीनो अम्ल कहलाते हैं; जैसे-वेलिन, ल्यूसीन, फेनिलऐलानीन आदि।

(ii) अनावश्यक ऐमीनो अम्ल:

ऐमीनो अम्ल जिनकी आवश्यकता मानव स्वास्थ्य तथा वृद्धि के लिए होती है तथा जिनका संश्लेषण मानव शरीर में होता है, अनावश्यक ऐमीनो अम्ल कहलाते हैं; जैसे-ग्लाइसीन, ऐलानीन, ऐस्पार्टिक अम्ल आदि।

12. प्रोटीन के सन्दर्भ में निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए

(i) पेप्टाइड बन्ध

(ii) प्राथमिक संरचना

(iii) विकृतीकरण। 

उत्तर:

(i) पेप्टाइड बन्ध :

रासायनिक रूप से पेप्टाइड आबन्ध, -COOH समूह तथा -NH2, समूह के मध्य बना एक आबन्ध होता है। दो एक जैसे अथवा भिन्न ऐमीनो अम्लों के अणुओं के मध्य अभिक्रिया एक अणु के ऐमीनो समूह तथा दूसरे अणु के कार्बोक्सिल समूह के मध्य संयोग से होती है जिसके फलस्वरूप एक जल का अणु मुक्त होता है तथा पेप्टाइड आबन्ध -CO-NH- बनता है। चूँकि उत्पाद दो ऐमीनो अम्लों के द्वारा बनता है, अत: इसे डाइपेप्टाइड कहते हैं।


उदाहरणार्थ :

जब ग्लाइसीन का कार्बोक्सिल समूह, ऐलेनीन के ऐमीनो समूह के साथ संयोग करता है तो हमें एक डाइपेप्टाइड, ग्लाइसिलऐलैनीन प्राप्त होता है।


D-ग्लूकोस की अभिक्रिया $HNO_3$ के साथ दर्शाते हुए


ग्लाइसिलऐलैनीन दर्शाते हुए


(ii) प्राथमिक संरचना:

प्रोटीन में एक अथवा अनेक पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएँ उपस्थित हो सकती हैं। किसी प्रोटीन के प्रत्येक पॉलिपेप्टाइड में ऐमीनो अम्ल एक विशिष्ट क्रम में संयुक्त होते हैं। ऐमीनो अम्लों का यह विशिष्ट क्रम प्रोटीन्स की प्राथमिक संरचना बनाता है। प्राथमिक संरचना में किसी भी प्रकार का परिवर्तन अर्थात् ऐमीनो अम्लों के क्रम में परिवर्तन से भिन्न प्रोटीन उत्पन्न होती हैं।


(iii) विकृतीकरण :

जैविक निकाय में पायी जाने वाली विशेष त्रिविम संरचना तथा जैविक सक्रियता वाली प्रोटीन, प्राकृत प्रोटीन कहलाती हैं। जब प्राकृत प्रोटीन में भौतिक परिवर्तन जैसे ताप में परिवर्तन अथवा रासायनिक परिवर्तन करते हैं (जैसे-pH में परिवर्तन आदि) तो हाइड्रोजन आबन्धों में अस्तव्यस्तता उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण गोलिका (ग्लोब्यूल) खुल जाती है तथा हेलिक्स अकुण्डलित हो जाती है तथा प्रोटीन अपनी जैविक सक्रियता को खो देती है। इसे प्रोटीन का विकृतीकरण कहते हैं। विकृतीकरण के दौरान 2° तथा 3° संरचनाएँ नष्ट हो जाती हैं, परन्तु 1° संरचना अप्रभावित रहती है। उबालने पर अण्डे की सफेदी का स्कन्दन विकृतीकरण का एक सामान्य उदाहरण है। एक अन्य उदाहरण दही का जमना है जो दूध में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा लैक्टिक अम्ल उत्पन्न होने के कारण होता है।

13. प्रोटीन की द्वितीयक संरचना के सामान्य प्रकार क्या हैं?

उत्तर: किसी प्रोटीन की द्वितीयक संरचना का सम्बन्ध उस आकृति से है जिसमें पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला विद्यमान होती है। यह दो भिन्न प्रकार की संरचनाओं में विद्यमान होती हैं α – हेलिक्स तथा β – प्लीटेड शीट संरचना। ये संरचनाएँ पेप्टाइड आबन्ध के –CO- तथा – NH -समूह के मध्य हाइड्रोजन आबन्ध के कारण पॉलिपेप्टाइड की मुख्य श्रृंखला के नियमित कुण्डलन में उत्पन्न होती हैं।

14. प्रोटीन की -हेलिक्स संरचना के स्थायीकरण में कौन-से आबन्ध सहायक होते हैं?

उत्तर : प्रोटीन की z-हेलिक्स संरचना एक ऐमीनो अम्ल अवशिष्ट के C=O तथा चतुर्थ ऐमीनो अम्ल अवशेष के N – H के मध्य अन्तरा – आणविक H-आबन्ध द्वारा स्थायित्व प्राप्त करती है।

15. रेशेदार तथा गोलिकाकार प्रोटीन को विभेदित कीजिए।

उत्तर :

(i) रेशेदार प्रोटीन :

जब पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएँ समानान्तर होती हैं। तथा हाइड्रोजन एवं डाइसल्फाइड आबन्धों द्वारा संयुक्त रहती हैं तो रेशासम (रेशे जैसी) संरचना बनती है। इस प्रकार के प्रोटीन सामान्यत: जल में अविलेय होती हैं। रेशेदार प्रोटीन जन्तु ऊतकों की प्रमुख संरचनात्मक पदार्थ होती हैं। कुछ सामान्य उदाहरण किरेटिन (बाल, ऊन तथा रेशम में उपस्थित) तथा मायोसिन (मांसपेशियों में उपस्थित) आदि हैं।


(ii) गोलिकाकार प्रोटीन:

जब पॉलिपेप्टाइड की श्रृंखलाएँ कुण्डली बनाकर गोलाकृति प्राप्त कर लेती हैं तो ऐसी संरचनाएँ प्राप्त होती हैं। ये सामान्यतः जल में विलेय होती हैं क्योकि इनके अणु दुर्बल अन्तराअणुक बलों द्वारा जुड़े रहते हैं। इन्सुलिन तथा ऐल्बुमिन इनके सामान्य उदाहरण हैं।

16. ऐमीनो अम्लों की उभयधर्मी प्रकृति को आप कैसे समझाएँगे?

उत्तर :ऐमीनो अम्ल में एक कार्बोक्सिल समूह (अम्लीय) तथा एक ऐमीन समूह (क्षारीय) समान अणु में पाए जाते हैं। जलीय विलयन में -COOH समूह एक H+ खोता है तथा $—NH_2$, समूह इसे स्वीकार करता है। इस प्रकार ज्विट्टर आयन (zwitterion) का निर्माण होता है।


ज्विट्टर आयन का निर्माणदर्शाते हुए



ज्विट्टर आयन का निर्माणदर्शाते हुए


द्विध्रुवीय या ज्विट्टर आयन संरचना के कारण ऐमीनो अम्ल उभयधर्मी प्रकृति के होते हैं। ऐमीनो अम्ल की अम्लीय प्रकृति +NH3 के कारण होती है तथा क्षारीय प्रकृति COO– समूह के कारण होती है।

द्विध्रुवीय या ज्विट्टर आयन संरचना के कारण ऐमीनो अम्ल उभयधर्मी प्रकृति दर्शाते हुए


द्विध्रुवीय या ज्विट्टर आयन संरचना के कारण ऐमीनो अम्ल उभयधर्मी प्रकृति दर्शाते हुए


17. एन्जाइम क्या होते हैं? (2016, 17, 18)

उत्तर : एन्जाइम जैव-उत्प्रेरक होते हैं। जीवधारियों में होने वाली विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाओं में समन्वयन के कारण ही जीवन सम्भव होता है।

उदाहरणार्थ :

भोजन का पाचन, उपयुक्त अणुओं का अवशोषण तथा अन्तत: ऊर्जा का उत्पादन। इस प्रक्रम में अभिक्रियाएँ एक अनुक्रम में होती हैं तथा ये सभी अभिक्रियाएँ शरीर में मध्यम परिस्थितियों में सम्पन्न होती हैं। यह कुछ जैव-उत्प्रेरकों की सहायता से होता है। इन्हीं जैव-उत्प्रेरकों को एन्जाइम कहा जाता है। रासायनिक रूप में लगभग सभी एन्जाइम गोलिकाकार प्रोटीन होते हैं। एन्जाइम किसी विशेष अभिक्रिया अथवा विशेष क्रियाधार के लिए विशिष्ट होते हैं अर्थात् प्रत्येक जैव-तन्त्र के लिए भिन्न एन्जाइम की आवश्यकता होती है, इसलिए एन्जाइम अन्य प्रचलित उत्प्रेरकों से भिन्न होते हैं। ये अत्यन्त सक्रिय होते हैं तथा इनकी अत्यन्त सूक्ष्म मात्रा की ही आवश्यकता होती है। ये अनुकूल ताप (310K) तथा pH(7.4) एवं एक वायुमण्डलीय दाब पर कार्य करते हैं।

18. प्रोटीन की संरचना पर विकृतीकरण का क्या प्रभाव होता है?

उत्तर : प्रोटीन ऊष्मा, खनिज अम्ल, क्षार आदि की क्रिया के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। गर्म करने या खनिज अम्लों की क्रिया कराने पर गोलिकामय प्रोटीन (विलेय प्रोटीन) स्कन्दित या अवक्षेपित होकर तन्तुमय प्रोटीन देते हैं जोकि जल में अविलेय होते है जिसके परिणामस्वरूप प्रोटीन की जैव सक्रियता समाप्त हो जाती है। रासायनिक रूप से विकृतिकरण प्राथमिक संरचना को परिवर्तित नहीं करता है, लेकिन प्रोटीन की द्वितीयक तथा तृतीयक संरचनाएँ परिवर्तित हो जाती हैं।

19. विटामिनों को किस प्रकार वर्गीकृत किया गया है? रक्त के थक्के जमने के लिए जिम्मेदार विटामिन का नाम दीजिए।

उत्तर :

विटामिनों को जल या वसा में विलेयता के आधार पर दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है

  1. जल में विलेय विटामिन : विटामिन B-कॉम्प्लेक्स तथा विटामिन Cl

  2. वसा में विलेय विटामिन : विटामिन A, D, E, K आदि। विटामिन K रक्त के थक्के जमने के लिए उत्तरदायी है।

20. विटामिन A व C हमारे लिए आवश्यक क्यों हैं? उनके महत्त्वपूर्ण स्रोत दीजिए।

उत्तर :विटामिन A की कमी से जीरोफ्थैल्मिया तथा रतौंधी हो जाते हैं, अत: इसका प्रयोग हमारे लिए आवश्यक होता है।

(i) स्रोत (Sources) :

मछली के यकृत का तेल, गाजर, मक्खन तथा दूध। विटामिन C की कमी से स्कर्वी तथा पायरिया हो जाता है।

(ii) स्रोत (Sources) :

नींबू, आँवला, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अंकुरित अनाज आदि।

21. न्यूक्लीक अम्ल क्या होते हैं? इनके दो महत्त्वपूर्ण कार्य लिखिए। 

उत्तर : न्यूक्लीक अम्ल वे जैव-अणु होते हैं जो सभी जीवित कोशिकाओं के नाभिकों में न्यूक्लियो- प्रोटीन अथवा क्रोमोसोम के रूप में पाए जाते हैं। न्यूक्लीक अम्ल मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं—डिऑक्सीराइबोस न्यूक्लीक अम्ल (DNA) तथा राइबोसन्यूक्लीक अम्ल (RNA)। चूंकि न्यूक्लीक अम्ल न्यूक्लियोटाइडों की लम्बी श्रृंखला वाले बहुलक होते हैं, अतः इन्हें पॉलिन्यूक्लियोटाइड भी कहते हैं। न्यूक्लीक अम्लों के दो महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं


(i) DNA आनुवंशिकता का रासायनिक आधार है तथा इसे आनुवंशिक सूचनाओं के संग्राहक के रूप में जाना जाता है। DNA लाखों वर्षों से किसी जीव की विभिन्न प्रजातियों की पहचान बनाए रखने के लिए विशिष्ट रूप से उत्तरदायी है। कोशिका विभाजन के समय एक DNA अणु स्वप्रतिकरण (self replication) में सक्षम होता है तथा पुत्री कोशिका में समान DNA रज्जुक का अन्तरण होता है।

(ii) न्यूक्लीक अम्ल (DNA तथा RNA) का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य कोशिका में प्रोटीन का संश्लेषण है। वास्तव में कोशिका में प्रोटीन का संश्लेषण विभिन्न RNA अणुओं द्वारा होता है, परन्तु किसी विशेष प्रोटीन के संश्लेषण का सन्देश DNA में उपस्थित होता है।

22. न्यूक्लियोसाइड तथा न्यूक्लियोटाइड में क्या अन्तर होता है?

उत्तर :

1. न्यूक्लियोसाइड :

न्यूक्लियोसाइड में न्यूक्लिक अम्ल के दो आधारीय घटक होते हैं—पेण्टोस शर्करा तथा एक नाइट्रोजनी क्षारक।

नाइट्रोजनी क्षारक + पेन्टोस शर्करा → न्यूक्लियोसाइड

उपस्थित शर्करा के आधार पर न्यूक्लियोसाइड राइबोसाइड तथा डीऑक्सीराइबोसाइड प्रकार के होते हैं।


2. न्यूक्लियोटाइड :

न्यूक्लियोटाइड में न्यूक्लिक अम्लों के तीनों घटक अर्थात् H3PO4, पेण्टोस शर्करा तथा नाइट्रोजनी क्षारक पाए जाते हैं।

नाइट्रोजनी क्षारक + पेन्टोस शर्करा + $H_3PO_4$ → न्यूक्लियोटाइड  या  न्यूक्लियोसाइड + $H_3PO_4$ → न्यूक्लियोटाइड

उपस्थित शर्करा के प्रकार के आधार पर न्यूक्लियोटाइड दो प्रकार के होते हैं

  1. राइबोन्यूक्लियोटाइड

  2. डीऑक्सीराइबोन्यूक्लियोटइड।

23. DNA के दो रज्जुक समान नहीं होते, अपितु एक-दूसरे के पूरक होते हैं। समझाइए।

उत्तर : DNA अणु में दो रज्जुक, एक रज्जुक के प्यूरीन क्षारक तथा अन्य के पिरिमिडीन क्षारक के मध्य या इसके विपरीत के मध्य हाइड्रोजन आबन्धों के द्वारा जुड़े रहते हैं। क्षारकों के विभिन्न आकारों एवं ज्यामितियों के कारण DNA में एकमात्र सम्भव युग्मन G (ग्वानीन) तथा C (साइटोसीन) के मध्य तीन हाइड्रोजन आबन्धों द्वारा हो सकता है। दूसरे शब्दों में क्षारकों A (ऐडीनीन) तथा T (थायमीन) के मध्य दो हाइड्रोजन आबन्धों द्वारा युग्मन सम्भव होता है।


DNA दर्शाते हुए


DNA दर्शाते हुए


इस क्षारक-युग्मन सिद्धान्त के कारण एक रज्जुक में क्षारकों का अनुक्रम दूसरे रज्जुक में क्षारकों के अनुक्रम को स्वत: व्यवस्थित कर देता है। अत: DNA के दो रज्जुक समान नहीं होते, अपितु एक-दूसरे के पूरक होते हैं।

24. DNA तथा RNA में महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक एवं क्रियात्मक अन्तर लिखिए।

उत्तर : संरचनात्मक अन्तर :

.

DNA

RNA

1.

DNA में में उपस्थित शर्करा 2- D- ओक्सी-D-(-)-राइबोस है ।


RNA में में उपस्थित शर्करा  D-(-)-राइबोस है ।


2.

DNA में साइटोसीन तथा थायमीन पिरीमिडीन  क्षारकों क्षारकों के रुप में होते हैं ।

RNA में साइटोसीन तथा थायमीन यूरेसिल क्षारकों के रुप में होते हैं ।

3.

DNA  की द्विकुंडली α- हैलिक्स संरचना होती है।

RNA  की एकल कुंडली α- हैलिक्स संरचना होती है।

4.

DNA अणु अत्यधिक विशाल होते हैं इनका आण्विक द्रव्यमान 6 X106 u मध्य होता है

RNA अणु  अपेक्षाकृत

 छोटे होते हैं इनका आण्विक द्रव्यमान 20,000 से 40,000 u के मध्य होता है


क्रियात्मक अन्तर 


क्र.स.

DNA

RNA

1

DNA में प्रतिकरण का विशिष्ट गुण होता है।

RNA सामान्यतया प्रतिकरण प्रतिकरण नही करते हैं ।

2

DNA  आनुवांशिक प्रभावों के संचरण को 

नियंत्रित करता है।

RNA प्रोटीन संश्लेषण को नियंत्रित करता है।


25. कोशिका में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के RNA कौन-से हैं?

उत्तर :कोशिका में तीन प्रकार के RNA पाए जाते हैं

  1. राइबोसोमल RNA (r-RNA)

  2. सन्देशवाहक RNA (m-RNA)

  3. स्थानान्तरण RNA (t-RNA)

 प्रश्नावली

1. ग्लूकोस तथा सुक्रोस जल में विलेय हैं, जबकि साइक्लोहेक्सेन अथवा बेन्जीन (सामान्य छह सदस्यीय वलय युक्त यौगिक) जल में अविलेय होते हैं। समझाइए।

उत्तर : ग्लूकोस तथा सुक्रोस में क्रमश: 5 तथा 8 –OH समूह होते हैं। ये जल के अणुओं के साथ हाइड्रोजन आबन्ध बनाते हैं। अत्यधिक H- आबन्धन के कारण ग्लूकोस तथा सुक्रोस जल में विलेय हैं। दूसरी ओर, साइक्लोहेक्सेन में –OH समूह नहीं होते हैं। यह जल के साथ हाइड्रोजन आबन्ध नहीं बनाता है, अतएव इसमें अविलेय रहता है।

2. लैक्टोस के जल-अपघटन से किन उत्पादों के बनने की अपेक्षा करते हैं?

उत्तर : जल-अपघटन पर लैक्टोस मोनोसैकेराइड के दो अणु देता है अर्थात् D – (+) – ग्लूकोस तथा D – (+) गैलेक्टोस का एक-एक अणु।


\[{{C}_{12}}{{H}_{22}}{{O}_{11}}+{{H}_{2}}O\xrightarrow{{{H}_{3}}{{O}^{+}},lactose}{{C}_{6}}{{H}_{12}}{{O}_{6}}+{{C}_{6}}{{H}_{12}}{{O}_{6}}\]

3.D – ग्लूकोस के पेन्टाऐसीटेट में आप ऐल्डिहाइड समूह की अनुपस्थिति को कैसे । समझाएँगे?

उत्तर : ग्लूकोस ऐल्डोहेक्सोस होने के कारण ऐल्डिहाइड समूह की लाक्षणिक अभिक्रियाएँ देता है; जैसे -$NH_2OH$, टॉलेन अभिकर्मक तथा फेहलिंग अभिकर्मक के साथ अभिक्रिया। ग्लूकोस के ऐसीटिक ऐनहाइड्राइड के साथ ऐसिलीकरण से प्राप्त ग्लूकोस पेण्टाऐसीटेट इन अभिक्रियाओं को नहीं देता है।


D – ग्लूकोस के पेन्टाऐसीटेट में आप ऐल्डिहाइड समूह की अनुपस्थिति को दर्शाते हुए


D – ग्लूकोस के पेन्टाऐसीटेट में आप ऐल्डिहाइड समूह की अनुपस्थिति को दर्शाते हुए


इसका अभिप्राय है कि ग्लूकोस पेण्टाऐसीटेट में ऐल्डिहाइड समूह या तो अनुपस्थित होता है या इन अभिक्रियाओं के लिए उपलब्ध नहीं रहता है। वास्तव में D – ग्लूकोस के पेण्टाऐसीटेट में ऐल्डिहाइड समूह हेमीऐसीटल संरचना का भाग होता है, अतएव इन अभिक्रियाओं में भाग लेने के लिए उपलब्ध नहीं रहता है।

4. ऐमीनो अम्लों के गलनांक एवं जल में विलेयता सामान्यतः संगत हैलो अम्लों की तुलना में अधिक होती है। समझाइए।

उत्तर : ऐमीनो अम्ल ज्विट्टर आयन ($H_3$  [latex]\overset { + }{ N } { H }_{ 3 }[/latex] -CHR-COO–) के रूप में पाए जाते हैं। द्विध्रुवीय लवण सदृश लक्षण के कारण इनमें प्रबल द्विध्रुव-द्विध्रुव अथवा स्थिर-विद्युत आकर्षण बल पाए जाते हैं, अतएव ऐमीनो अम्लों के क्वथनांक उच्च होते हैं। ऐमीनो अम्ल $H_2O$ अणुओं के साथ प्रबल अन्योन्यक्रिया करते हैं। तथा इसमें विलेय होते हैं। हैलो अम्लों की लवण सदृश्य संरचना नहीं 

होती है, अत: इनके क्वथनांक निम्न होते हैं। हैलोअम्ल ऐमीनो अम्लों की तरह $H_2O$ अणुओं के साथ प्रबलता के साथ अन्योन्यक्रिया नहीं करते हैं, अत: जल में ऐमीनो अम्लों की विलेयता हैलोअम्लों से अधिक होती है।

5. अण्डे को उबालने पर उसमें उपस्थित जल कहाँ चला जाता है?

उत्तर : उबालने पर अण्डे में उपस्थित प्रोटीनों का पहले विकृतिकरण और फिर स्कंदन हो जाता है। इन स्कंदित प्रोटीनों द्वारा जल अवशोषित या अधिशोषित हो जाता है।

6. हमारे शरीर में विटामिन C संचित क्यों नहीं होता?

उत्तर :विटामिन C (ऐस्कॉर्बिक अम्ल) जल में विलेय होता है। यह शीघ्र ही मूत्र के साथ उत्सर्जित हो जाता है तथा हमारे शरीर में संचित नहीं रह सकता है।

7. यदि DNA के थायमीनयुक्त न्यूक्लियोटाइड का जल-अपघटन किया जाए तो कौन-कौन से उत्पाद बनेंगे?

उत्तर :

2-डीऑक्सी-D-राइबोस, फॉस्फोरिक अम्ल तथा थायमीन।

8. जब RNA का जल-अपघटन किया जाता है तो प्राप्त क्षारकों की मात्राओं के मध्य कोई सम्बन्ध नहीं होता। यह तथ्य RNA की संरचना के विषय में क्या संकेत देता है?

उत्तर :
DNA अणु में दो कुण्डलिनियों में चार पुरक क्षारक परस्पर युग्म बनाए रखते हैं जैसे साइटोसीन (C) सदैव ग्वानीन (G) के साथ युग्म बनाता है, जबकि थायमीन (T) सदैव ऐडेनीन के साथ युग्म बनाता है। इसलिए जब एक DNA अणु जल-अपघटित होता है, तब साइटोसीन की मोलर मात्राएँ सदैव ग्वानीन के तुल्य तथा इसी प्रकार ऐडेनीन की सदैव थायमीन के तुल्य होती हैं। RNA में भी चार क्षारक होते हैं जिनमें प्रथम तीन DNA के समान, परन्तु चौथा क्षारक यूरेसिल (U) होता है। चूंकि RNA में प्राप्त चारों क्षारकों (C,G, A तथा U) की मात्राओं के मध्य कोई सम्बन्ध नहीं होता है, इसलिए क्षारक-युग्मन सिद्धान्त (अर्थात् A के साथ U तथा C के साथ G का युग्म) का पालन नहीं होता है, इससे यह संकेत मिलता है कि DNA के विपरीत RNA में एक कुण्डलिनी होती है।

NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 14 Biomolecules in Hindi

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These solutions are nothing but a compilation of all the answers to the questions of the textbook exercises. The answers/solutions are given in a stepwise format and very well researched by the subject matter experts who have relevant experience in this field. Relevant diagrams, graphs, illustrations are provided along with the answers wherever required. In nutshell, NCERT Solutions for Class 12 Chemistry in Hindi come really handy in exam preparation and quick revision as well prior to the final examinations.

FAQs on NCERT Solutions For Class 12 Chemistry Chapter 14 Biomolecules in Hindi - 2025-26

1. How do the NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 14 explain the method to classify carbohydrates like glucose and sucrose?

The NCERT Solutions provide a clear, step-by-step method for classification. First, they explain the concept of hydrolysis. Carbohydrates that cannot be hydrolysed further, like glucose, are classified as monosaccharides. Those that yield two monosaccharide units on hydrolysis, like sucrose, are classified as disaccharides. The solutions use specific reactions to demonstrate this, ensuring students can apply the correct definition to solve problems as per the CBSE 2025-26 syllabus.

2. What is the correct method, as shown in the NCERT Solutions, to list the differences between DNA and RNA for board exams?

The NCERT solutions model the ideal format for answering this question. They advise presenting the differences in a tabular format for maximum clarity and marks. The key differentiating points highlighted in the solutions are:

  • The type of sugar (Deoxyribose in DNA vs. Ribose in RNA).
  • The nitrogenous bases (Thymine in DNA vs. Uracil in RNA).
  • The overall structure (Double helix vs. Single strand).
  • Primary biological function (Genetic information storage vs. Protein synthesis).
Following this structured approach ensures all key points are covered accurately.

3. How do the step-by-step NCERT solutions help in solving problems on the denaturation of proteins?

The NCERT Solutions break down the concept of denaturation by first defining it as the loss of biological activity of a protein due to physical or chemical changes. The solutions explain that denaturation disrupts the secondary and tertiary structures but keeps the primary structure intact. This step-by-step explanation helps students correctly identify what changes and what remains the same, which is a common point of confusion in exam questions.

4. What is the approach used in NCERT Solutions to solve questions about essential and non-essential amino acids?

The NCERT Solutions clarify this by providing a simple, two-part definition. The method is:

  • First, identify if the amino acid can be synthesised by the human body. If it can, it is non-essential.
  • Second, if the amino acid cannot be synthesised by the body and must be obtained through diet, it is essential.
The solutions provide examples for each category, which is the correct way to frame an answer in CBSE exams.

5. How do the NCERT solutions for Chapter 14 illustrate the formation of a peptide bond step-by-step?

The solutions illustrate this by showing a reaction between two amino acids. The method involves:

  • Identifying the carboxyl group (-COOH) of one amino acid and the amino group (-NH2) of another.
  • Showing the elimination of a water molecule (H2O).
  • Drawing the resulting amide linkage (-CO-NH-), which is correctly labelled as the peptide bond.
This stepwise visual representation helps students accurately draw and explain the formation in their answers.

6. Why is it crucial to draw Haworth structures for glucose as shown in the NCERT solutions, and how does this method clarify the concept of anomers?

The NCERT solutions emphasize Haworth structures because the straight-chain structure of glucose cannot explain some of its chemical properties. Drawing the cyclic hemiacetal structure (Haworth projection) is the correct method to show how the C1 aldehyde group reacts with the C5 hydroxyl group. This process creates a new chiral centre at C1, and the two resulting stereoisomers, α-D-glucose and β-D-glucose, are called anomers. The solutions show that this visual method is the only way to correctly represent and differentiate these anomers.

7. When solving questions on vitamins, what common mistakes do students make, and how do the NCERT Solutions help in classifying them correctly?

A common mistake is incorrectly matching vitamins to their deficiency diseases. The NCERT solutions solve this by presenting the information in a structured manner, focusing on a clear classification based on solubility. The method is to first categorise vitamins as either fat-soluble (A, D, E, K) or water-soluble (B-complex, C). The solutions then link each vitamin to its specific function and deficiency disease, helping students create a logical framework to avoid memorisation errors.

8. Beyond providing direct answers, how do the detailed methods in NCERT Solutions for Biomolecules prepare students to tackle unfamiliar HOTS questions?

The detailed methods in the NCERT Solutions build a strong foundation of 'why' a certain process occurs, not just 'what' happens. For instance, by explaining the stepwise logic of protein denaturation or glycosidic bond formation, students learn the underlying principles. This empowers them to apply these core concepts to new, unfamiliar problems (HOTS) by reasoning from first principles, a skill that is essential for scoring well in the CBSE board exams.

9. How can a student use the solved in-text questions in the NCERT Solutions for Biomolecules to build a stronger conceptual foundation for the final exercises?

The in-text questions are designed as checkpoints to test understanding of a newly introduced topic. The NCERT Solutions for these questions provide immediate, focused clarification. The recommended method is to attempt the in-text questions right after reading a topic, then use the solutions to verify the approach. This technique helps solidify understanding of core concepts like zwitterions or glycosidic linkages before moving on to the more complex, multi-concept exercise questions at the end of the chapter.

10. How do the NCERT Solutions for Biomolecules solve questions related to enzymes and their specific functions?

The solutions approach these questions by first establishing that enzymes are highly specific biological catalysts. To solve a problem, they demonstrate the correct naming convention where the enzyme's name often ends in '-ase' and is derived from the substrate it acts upon. For example, the solution for the hydrolysis of maltose into glucose clearly identifies the enzyme as maltase. This methodical linking of substrate to a specific enzyme is key to answering these questions correctly.