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NCERT Solutions For Class 12 Hindi Antra (Poem) Chapter 11 Sumirini Ke Man Ke - 2025-26

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Sumirini Ke Man Ke Class 12 Questions and Answers - Free PDF Download

In NCERT Solutions Class 12 Hindi Antra Chapter 11 Poem, you’ll dive into spiritual thoughts and the inner feelings of the mind. This chapter guides you through important ideas like devotion, self-reflection, and finding answers within yourself using simple, clear language. Exploring this chapter helps you understand how to look at life with a new perspective.

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If you ever feel confused about poetry meanings or how to write better answers, Vedantu’s NCERT Solutions make things super easy. You’ll find step-by-step explanations, thoughtful analysis, and useful tips for every question. For more help, you can always check the syllabus with our handy Class 12 Hindi syllabus. The detailed solutions are also available as downloadable PDFs to help you revise anytime.


Access NCERT Solutions Class 12 Hindi Antra Chapter 11 Sumirini Ke Man Ke

(क) बालक बच गया–

प्रश्न 1. बालक से उसकी उम्र और योग्यता से ऊूपर के कौन-कौन से प्रश्न पूछे गए ?
उत्तर: बालक से उसकी उम्र और योग्यता से ऊपर के निम्नलिखित प्रश्न पूछे गए:

  1. धर्म के कितने लक्षण हैं? उनके नाम बताइए।

  2. रस कितने हैं? उनके उदाहरण दीजिए।

  3. पानी के चार डिग्री नीचे शीतलता फैल जाने का क्या कारण है?

  4. चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक कारण बताइए।

  5. इंग्लैंड के राजा हेनरी आठवें की पत्नियों के नाम बताइए।

  6. पेशवाओं के शासन की अवधि के बारे में बताओ।


प्रश्न 2. बालक ने क्यों कहा कि मैं यावज्जन्म लोक सेवा करूँगा ?
उत्तर: 'बालक बच गया' नामक लघु निबंध में एक आठ साल के बच्चे से बड़े-बड़े प्रश्न पूछे जा रहे थे और वह उनके उत्तर दे रहा था। अंत में जब उससे पूछा गया कि "तू क्या करेगा?" तो बालक ने उत्तर दिया—"मैं यावज्जन्म लोक सेवा करूँगा।" पूरी सभा उसका उत्तर सुनकर खुश हुई और उसके पिता का भी दिल उल्लास से भर गया। बालक ने ऐसा उत्तर क्यों दिया? संभवतः उसे अपने उत्तर का अर्थ भी ठीक से पता नहीं था। लेकिन उसे जो कुछ सिखाया गया था, वही रटा-रटाया उत्तर उसने दे दिया।


प्रश्न 3. बालक द्वारा इनाम में लड्डू माँगने पर लेखक ने सुख की साँस क्यों भरी ?
उत्तर: लेखक देख रहा था कि बालक को उसके स्वाभाविक स्वभाव के अनुसार बोलने नहीं दिया जा रहा था। उसे सिर्फ रटी-रटाई बातें कहने के लिए प्रेरित किया जा रहा था। बालक से ऐसे प्रश्न पूछे जा रहे थे जो उसकी समझ से बाहर थे और उनके उत्तर भी वह बस याद कर के दे रहा था, जो लेखक को अस्वाभाविक लगा। लेकिन जब बालक से पूछा गया कि उसे इनाम में क्या चाहिए और उसने लड्डू की मांग की, तो लेखक को बहुत अच्छा लगा। उसने राहत की साँस ली क्योंकि इस बार बालक का उत्तर उसकी उम्र और स्वभाव के अनुकूल था।


प्रश्न 4. बालक की प्रवृत्तियों का गला घोंटना अनुचित है, पाठ में ऐसा आभास किन स्थलों पर होता है कि उसकी प्रवृत्तियों का गला घोंटा जाता है ?
उत्तर: बालक की प्रवृत्तियों का गला घोंटना अनुचित है। उसकी प्रवृत्तियों को सहज रूप से विकसित होने देना चाहिए ताकि उसका समग्र विकास हो सके। पाठ में निम्नलिखित स्थलों पर यह आभास होता है कि बालक की प्रवृत्तियों का गला घोंटा जा रहा है:

  • जब बालक से ऐसे प्रश्न पूछे गए, जो उसकी समझ और उम्र के बाहर थे।

  • बालक की दृष्टि भूमि से ऊपर उठ नहीं पा रही थी, जो उसकी मानसिक तनाव की स्थिति को दर्शाता है।

  • बालक की आँखों में कृत्रिम और स्वाभाविक भावों की लड़ाई साफ दिखाई दे रही थी, जिससे पता चलता है कि उसकी स्वाभाविकता को दबाया जा रहा था।


प्रश्न 5. “बालक बच गया। उसके बचने की आशा है क्योंकि वह ‘लड्ड्द’ की पुकार जीवित वृक्ष के हरे पत्तों का मधुर मर्मर था, मरे काठ की अलमारी की सिर दुखाने वाली खड़खड़ाहट नहीं” कथन के आधार पर बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: बालक से जो कुछ उसके शिक्षक कहलवा रहे थे, वह उसकी स्वाभाविकता के विरुद्ध था। जब बालक से वृद्ध महाशय ने उसकी मनपसंद वस्तु इनाम में माँगने के लिए कहा, तब उसने 'लड्डू' माँगा। यह माँग उसकी बाल सुलभ स्वाभाविकता को दर्शाती है। लेखक को यह देखकर संतोष हुआ कि बालक में अभी भी स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ जीवित हैं, और उसका बचपन पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। जिस प्रकार हरा पेड़ अपने पत्तों से अपनी जीवंतता का संकेत देता है, उसी तरह बालक के 'लड्डू' माँगने से उसकी स्वाभाविकता का पता चलता था। बालक को स्वार्थवश नियमों और अनुशासन के कठोर बंधनों में बाँधने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उसकी स्वाभाविक प्रवृत्तियों को सहजता से बढ़ने देना चाहिए।


(ख) घड़ी के पुर्जे –

प्रश्न 1. लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए ‘घड़ी के पुर्जें का दृष्टांत क्यों दिया है ?
उत्तर: लेखक ने धर्म का रहस्य समझाने के लिए घड़ी के पुर्जों का दृष्टांत इसलिए दिया है:

  • जिस प्रकार घड़ी अपने पुर्जों से चलती है, उसी तरह धर्म भी अपने नियम और कायदों पर चलता है।

  • हमारा काम घड़ी से समय जानना होता है, ठीक उसी प्रकार धर्म से भी हमारा काम केवल उसके ऊपरी स्वरूप को समझना होता है।

  • जैसे आम आदमी को घड़ी के पुर्जों की जानकारी नहीं होती, वैसे ही आम आदमी को धर्म की संरचना को जानने की जरूरत नहीं होती है।

  • इस दृष्टांत से लेखक ने यह बताना चाहा है कि धर्मोपदेशक धर्म को रहस्य बनाए रखना चाहते हैं ताकि लोग उनके इशारों पर चल सकें। वे धर्म की केवल बाहरी बातें बताते हैं, जिससे आम आदमी धर्म की गहराई नहीं जान पाता।


प्रश्न 2. ‘धर्म का रहस्य जानना वेदशास्त्रज्न धर्माचार्यों का ही काम है’ आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं ? धर्म संबंधी अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर : मैं इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं हूँ कि धर्म का रहस्य जानना केवल वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही काम है। यह हमारा भी काम है। धर्म का प्रभाव हम सभी पर पड़ता है, इसलिए धर्म को समझना हमारा अधिकार है। जब तक हम धर्म का रहस्य नहीं जानते, तब तक धर्माचार्य हमें मूर्ख बनाते रहेंगे और हमारी अज्ञानता का लाभ उठाते रहेंगे। हमें धर्म के स्वरूप और उसके अनुरूप और प्रतिकूल बातों को जानना चाहिए। धर्म आस्था का विषय है और इसे शोषण का साधन नहीं बनाना चाहिए। तथाकथित धर्माचार्य धर्म के रहस्यों को समझाने के बजाय उसे और भी रहस्यमय बना देते हैं ताकि वे अपना स्वार्थ सिद्ध कर सकें।


प्रश्न 3. घड़ी समय का ज्ञान कराती है। क्या धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार अपने समय का बोध नहीं कराते ?
उत्तर: घड़ी हमें समय का ज्ञान कराती है, बशर्ते कि हमें घड़ी देखना आता हो। इसी तरह धर्म संबंधी मान्यताएँ और विचार भी अपने समय का बोध कराते हैं। धर्म की हर मान्यता उस समय की परिस्थितियों का प्रतिबिंब होती है, जब उसे स्वीकारा गया। धर्म के विचार भी अपने काल का बोध कराते हैं। इसके लिए हमें धर्म के रहस्यों को समझना होगा। धर्माचार्य अक्सर धर्म की मान्यताओं को अपने ढंग से परिभाषित करते हैं और आम लोगों तक उनका वास्तविक स्वरूप नहीं पहुँचने देते।


प्रश्न 4. धर्म अगर कुछ विशेष लोगों, वेदशास्वज्ञ, धर्माचार्यों, मठाधीशों, पंडे-पुजारियों की मुडी में है तो आम आदमी और समाज का उससे क्या संबंध होगा ? अपनी राय लिखिए।
उत्तर: अगर धर्म केवल कुछ विशेष लोगों जैसे वेदशास्त्रज्ञ, धर्माचार्य, मठाधीश, और पंडे-पुजारियों की मुट्ठी में रहता है, तो आम आदमी केवल अज्ञानता में फंसा रहेगा। ये तथाकथित धर्म के ठेकेदार आम आदमी को धर्म का वास्तविक स्वरूप जानने नहीं देते। वे धर्म को अपने अधिकार में रखकर उसका उपयोग अपने फायदे के लिए करते हैं। वे आम लोगों को धर्म की सिर्फ उतनी जानकारी देते हैं, जितनी वे चाहें। इन धर्माचार्यों द्वारा फैलाए गए अंधविश्वास से समाज को नुकसान होता है। हर व्यक्ति को खुद धर्म के बारे में जानने और समझने का प्रयास करना चाहिए ताकि धर्म का कोई स्वार्थी इस्तेमाल न कर सके। धर्म पर किसी का एकाधिकार नहीं होना चाहिए।


प्रश्न 5. ‘जहाँ धर्म पर कुछ मुद्ठी भर लोगों का एकाधिकार धर्म को संकुचित अर्थ प्रदान करता है वहीं धर्म का आम आदमी से संबंध उसके विकास एवं विस्तार का द्योतक है।’ तर्क सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर: यह कथन पूरी तरह से सत्य है। जब धर्म पर मुट्ठी भर लोगों का कब्जा होता है, तब धर्म संकुचित हो जाता है और उसका स्वरूप सीमित रह जाता है। धर्म के तथाकथित ठेकेदार इसका उपयोग केवल अपने लाभ के लिए करते हैं। वे धर्म को अपने तक सीमित रखते हैं। इसके विपरीत जब धर्म का संबंध आम आदमी से जुड़ता है, तब उसका विकास और विस्तार होता है। धर्म का असली उद्देश्य तभी पूरा होता है जब वह आम लोगों से जुड़ता है और उनकी जिंदगी को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इसलिए धर्म को केवल धर्माचार्यों तक सीमित रखने के बजाय उसे समाज के सभी लोगों तक पहुँचाना आवश्यक है।

प्रश्न 6. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) ‘वेदशास्त्र, धर्माचार्यों का ही काम है कि घड़ी के पुर्जे जानें, तुम्हें इससे क्या ?’
(ख) ‘अनाड़ी के हाथ में चाहे घड़ी मत दो पर जो घड़ीसाजी का इम्तहान पास कर आया है, उसे तो देखने दो।
(ग) ‘हमें तो धोखा होता है कि पड़दादा की घड़ी जेब में डाले फिरते हो, वह बंद हो गई है, तुम्हें न चाबी देना आता है न पुर्जे सुधारना, तो भी दूसरों को हाथ नहीं लगाने देते।
उत्तर :
(क) वेदशास्त्रों को जानने वाले धर्माचार्य धर्म के ठेकेदार बनते हैं और धर्म के रहस्यों को अपनी दृष्टि से समझाते हैं। यह एक तरह से घड़ीसाज जैसा काम है, जिसमें वे धर्म को अपने ही अनुसार प्रस्तुत करते हैं। लेकिन यह ठीक नहीं है, क्योंकि धर्म का संबंध सभी लोगों से है और सभी को धर्म की जानकारी होनी चाहिए।

(ख) यह सही है कि घड़ी को अनाड़ी व्यक्ति को नहीं देना चाहिए, क्योंकि वह उसे बिगाड़ सकता है। लेकिन जो व्यक्ति घड़ीसाजी का इम्तहान पास कर चुका है और जिसे घड़ी का पूरा ज्ञान है, उसे घड़ी देने में कोई हर्ज नहीं है। यही स्थिति धर्म की भी है। जो धर्म के बारे में नहीं जानता, उससे खतरा हो सकता है। लेकिन जो धर्म का जानकार है, उसे धर्म समझने और व्याख्या करने का अधिकार मिलना चाहिए।

(ग) यह कथन इस बात का प्रतीक है कि हम अपने पुराने समय के धर्म को अपने पास रखते हैं, लेकिन उसका सही उपयोग नहीं कर पाते। जैसे पुराने जमाने की घड़ी को जेब में रखने से यह भ्रम बना रहता है कि हमारे पास घड़ी है, चाहे वह बंद क्यों न हो, वैसे ही हम धर्म के पुराने स्वरूप को लेकर भ्रम में रहते हैं कि हम धार्मिक हैं। धर्म के इस अज्ञानता को दूर करना आवश्यक है ताकि हम इसका सही उपयोग कर सकें और दूसरों को भी इसका लाभ दे सकें।


(ग) ढेले चुन लो–

प्रश्न 1. वैदिककाल में हिंदुओं में कैसी लाटरी चलती थी जिसका जिक्र लेखक ने किया है?
उत्तर : वैदिक काल में हिंदुओं में एक प्रकार की लाटरी चलती थी जिसमें पुरुष सवाल पूछता था और महिला को जवाब देना होता था। पुरुष विद्या पढ़कर, स्नातक होकर, नहा-धोकर, माला पहनकर किसी लड़की के घर जाता था और उसे गौ-दान करता था। फिर वह लड़की के सामने मिट्टी के कुछ ढेले रखता और उसे उनमें से एक ढेला उठाने के लिए कहता। ये ढेले प्रायः सात होते थे, जिनमें वेदी, गौशाला, खेत, चौराहा, मसान (श्मशान) की मिट्टी होती थी। लड़की को इनके बारे में कोई जानकारी नहीं होती थी। यदि लड़की वेदी का ढेला उठाती, तो संतान वैदिक पंडित बनती, गोबर चुने तो पशुधन का धनी होता, खेत की मिट्टी उठाए तो जमींदार होता। मसान की मिट्टी अशुभ मानी जाती थी। इस तरह वैदिक काल में मिट्टी के ढेलों से विवाह का निर्णय होता था।


प्रश्न 2. ‘दुर्लभ बंधु’ की पेटियों की कथा लिखिए।
उत्तर: बबुआ हरिश्चंद्र के ‘दुर्लभ बंधु’ में पुरश्री के सामने तीन पेटियाँ रखी गई हैं – एक सोने की, दूसरी चाँदी की और तीसरी लोहे की। इन पेटियों में से किसी एक में उसकी प्रतिमूर्ति है। जो व्यक्ति स्वयंवर में आता है उसे इन तीन पेटियों में से एक को चुनना होता है। अकड़बाज व्यक्ति सोने की पेटी चुनता है और उसे खाली हाथ लौटना पड़ता है। लोभी व्यक्ति चाँदी की पेटी चुनता है लेकिन उसे भी असफलता मिलती है। वहीं सच्चा प्रेमी लोहे की पेटी को चुनता है और उसी में पुरश्री की प्रतिमूर्ति मिलती है।


प्रश्न 3. ‘जीवन साथी’ का चुनाव मिट्टी के ढेलों पर छोड़ने के कौन-कौन से फल प्राप्त होते हैं ?
उत्तर : मिट्टी के ढेलों से जीवन साथी के चुनाव का परिणाम इस प्रकार होता है:

  • यदि वेदी का ढेला उठाया जाए तो संतान वैदिक पंडित बनेगी।

  • अगर गोबर का ढेला चुना जाए तो संतान पशुधन का धनी होगी।

  • खेत की मिट्टी उठाने से संतान जमींदार बनेगी।

  • मसान (श्मशान) की मिट्टी को छूना अशुभ माना जाता था, जिससे घर मसान हो जाएगा और वह जन्मभर दुख भोगेगी।


प्रश्न 4. मिट्टी के छेलों के संदर्भ में कबीर की साखी की व्याख्या कीजिए-
पत्थर पूजै हरि मिलें तो तू पूज पहार।
इससे तो चक्की भली, पीस खाय संसार॥
उत्तर: कबीर की इस साखी में यह बताया गया है कि पत्थर की मूर्ति की पूजा करने से भगवान नहीं मिलते। अगर पत्थर को पूजने से भगवान मिल सकते हैं तो मैं तो पहाड़ की पूजा करने लगूँगा, पर यह सब व्यर्थ है। पत्थर का असली उपयोग तो चक्की के रूप में होता है जिससे लोग आटा पीसकर खाना बना सकते हैं। इसी तरह, मिट्टी के ढेलों की पूजा भी एक ढोंग मात्र है और इससे कोई वास्तविक लाभ नहीं होता।


प्रश्न 5. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) ‘अपनी आँखों से जगह देखकर, अपने हाथ से चुने हुए मिट्टी के डगलों पर भरोसा करना क्यों बुरा है और लाखों-करोड़ों कोस दूर बैठे बेड़े-बेड़े मिट्टी और आग के ढेलों-मंगल, शनिश्चर और बृहस्पति की कल्पित चाल के कल्पित हिसाब का भरोसा करना क्यों अच्छा है।
(ख) ‘आज का कबूतर अच्छा है कल के मोर से, आज का पैसा अच्छा है कल की मोहर से। आँखों देखा ढेला अच्छा ही होना चाहिए लाखों कोस के तेज पिंड से।
उत्तर:
(क) इस कथन में व्यक्ति के अंधविश्वास और ढोंग पर चोट की गई है। यहाँ अपने द्वारा चुनी गई मिट्टी के ढेलों पर भरोसा करने और ग्रह-नक्षत्रों की काल्पनिक चाल पर विश्वास करने के बीच तुलना की गई है। लेखक कहता है कि जिस जगह को आप स्वयं जानते हैं, उस पर विश्वास करना गलत क्यों है, जबकि करोड़ों मील दूर बैठे ग्रहों की चाल की कल्पना करके उनके अनुसार अपना भाग्य तय करना उचित माना जाता है। यहाँ लेखक यह बताना चाहता है कि अपने अनुभव पर विश्वास करना अधिक सही है, बजाय किसी अज्ञात और काल्पनिक चीज के।

(ख) यह कथन वात्स्यायन का है, जिसमें वर्तमान को प्राथमिकता देने की बात की गई है। इसका अर्थ है कि जो चीज़ हमारे पास आज है, वह उससे अधिक मूल्यवान है जिसे हम भविष्य में प्राप्त करने की संभावना रखते हैं। आज का कबूतर कल के मोर से बेहतर है, क्योंकि मोर भविष्य में मिलने की एक संभावना है, जो कभी भी पूरी नहीं हो सकती। इसी तरह, आज का पैसा कल की बड़ी रकम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। हाथ में मौजूद चीज की कीमत होती है, और काल्पनिक या भविष्य में मिलने वाली चीजों पर भरोसा करना मूर्खता है।


योग्यता विस्तार–

(क) बालक बच गया –

(क) बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों के विकास में ‘रटना’ बाधक है। कक्षा में संवाद कीजिए।
(ख) ज्ञान के क्षेत्र में ‘रटने’ का निषेध है किंतु क्या आप रटने में विश्वास करते हैं अपने विचार प्रकट कीजिए।
(क) ‘रटना’ बालक के स्वाभाविक विकास में रोड़ा अटकाता है। बच्चे की समझ बढ़नी अधिक आवश्यक है। उसे स्वयं समझने और अनुभव करने दीजिए। छात्र कक्षा में इस विषय पर संवाद करें।
(ख) हम रटने में विश्वास नहीं करते। रटने में हम अपने विवेक का प्रयोग नहीं करते, बल्कि रटकर सामग्री को उलट देते हैं।


(ख) घड़ी के पुर्जे –

(क) कक्षा में धर्म संसद का आयोजन कीजिए।
(ख) ‘धर्म का रहस्य जानना सिर्फ धर्माचार्यों का काम नहीं कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर उस रहस्य को जानने की कोशिश कर सकता है, अपनी राय दे सकता है’-टिण्पणी कीजिए।
(क) विद्यार्थी कक्षा में धर्म संसद का आयोजन करें।
(ख) यह कथन पूर्णतः सत्य है। धर्म पर किसी का एकाधिकार नहीं है। धर्म का संबंध सभी के साथ है। सभी को धर्म के रहस्य को जानने का अधिकार है। धर्माचायों का एकाधिकार समाप्त होना चाहिए।


(ग) ढेले चुन लो –

1. समाज में धर्म संबंधी अंधविश्वास पूरी तरह व्याप्त है। वैज्ञानिक प्रगति के संदर्भ में धर्म, विश्वास और आस्था पर निबंध लिखिए।
2. अपने घर में या आस-पास दिखाई देने वाले किसी रिवाज या अंधविश्वास पर एक लेख लिखिए।

1. धर्म और विज्ञान
चरमोन्नत जग में जब कि आज विज्ञान ज्ञान,
यह भौतिक साधन, यंत्र, वैभव, महान
सेवक हैं विद्युत, वाष्प शक्ति, धन बल नितांत
फिर क्यों जग में उत्पीड़न ? जीवन यों अशांत

वर्तमान युग में धर्म और विज्ञान के बीच जबरदस्त संघर्ष हो रहा है विज्ञान का प्रभाव आज विश्वव्यापी है। धीरे-धीरे लोगों में नास्तिकता आती जा रही है। इसका एकमात्र कारण है विज्ञान की उन्नति। आज से दो शताब्दी पूर्व जनता विज्ञान और वैज्ञानिकों को घृणा से देखती थी। उनका विचार था कि विज्ञान धार्मिक ग्रंथों के प्रतिकूल है। आज भी कुछ ऐसी विचारधारा जनता में है। मनुस्मृति में धर्म की परिभाषा इस प्रकार दी गई है

धृतिः क्षम दमोडस्तेयं शोचमिन्द्रिय निग्रह:
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्म लक्षणम्।

धैर्य, क्षमा, पवित्रता, आत्मसंयम, सत्य, अक्रोध आदि-आदि सदगुणों को धारण करना ही वास्तविक धर्म है। धर्म का उद्देश्य लोक कल्याण है। सच्चा धार्मिक व्यक्ति सम्पूर्ण संसार के कल्याण की कामना करता है।

धर्म और विज्ञान दोनों ने ही मानव जाति के उत्थान में पूर्ण सहयोग दिया है। धर्म ने मानव के हृदय को परिष्कृत किया और विज्ञान ने बुद्धि को। यदि मनुष्य इस समाज में सामान्य स्थान प्राप्त करके जीवनयापन कर सकता है, तो उसे सांसारिक सुख-शांति भी आवश्यक है। अत: संसार में धर्म और विज्ञान दोनों ही मानव कल्याण के लिए आवश्यक तत्व हैं।

धर्म मानव हृदय की उच्च और पवित्र भावना है। धार्मिक भावना से मनुष्य में सात्विक प्रवृत्तियों का उदय होता है। धर्म के लिए मनुष्य को शुभ कर्म करते रहना चाहिए और अशुभ कार्यों को त्याग देना चाहिए। धार्मिक मनुष्य को भौतिक सुखों की अवहेलना करनी चाहिए। वह कर्म के मार्ग से विचलित नहीं होता। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य की आत्मा अमर है और शरीर नाशवान है। मृत्यु के पश्चात् भी मनुष्य अपने सूक्ष्म शरीर से अपने किए हुए शुभ और अशुभ कमों का फल भोगता है। धार्मिक लोगों का विचार है कि इस अल्प जीवन में सुख भोगने की अपेक्षा पुण्य कार्य करना चाहिए।

जो धर्म समाज को उन्नति की ओर ले जा रहा था, वह अंधविश्वास और अंध श्रद्धा में ढलकर पतन का कारण बन गया। अंधविश्वास के अंधकार से निकलकर मानव ने बुद्धि और तर्क की शरण ली। लोगों में आँखों देखी बात या तर्क की कसौटी पर कसी हुई बात पर विश्वास करने की प्रवृत्ति जागृत हुई। विज्ञान की भी मूल प्रवृत्ति यही है, धर्मग्रंथों में लिखी हुई या उपदेशों द्वारा कही हुई बात को वह सत्य नहीं मानता, जब तक कि नेत्रों के प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा तर्क सिद्ध न हो जाए।

धर्म की आड़ लेकर जो अपने स्वार्थ साधन में संलग्न थे, उनके हितों को विज्ञान से धक्का पहुँचा, वे वैज्ञानिकों के मार्ग में विघ्न उपस्थित करने लगे, “उघरे अंत न होई निबाहू “। अब धर्म के बाह्य आडंबरों की पोल ख़ुल गई तो जनता सत्य के अन्वेषण में प्राणप्रण से लग गई। जो सुख और समृद्धि धार्मिकों की स्वर्गीय कल्पना में थे, उन्हें वैज्ञानिकों ने अपनी खोजों से इस संसार में प्रस्तुत कर दिखाया। धर्म ईश्वर की पूजा करना था, विज्ञान ने प्रकृति की उपासना की। विज्ञान ने पाँचों तत्त्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) को अपने वश में किया। उसने अपनी रचचि के अनुसार भिन्न-भिन्न सेवायें लीं, इस प्रकार मानव ने जीवन और जगत को सुखी और समृद्ध बना दिया। वैज्ञानिकों ने अपने अनेक आश्चर्यजनक परीक्षणों से जनता में तर्क बुद्धि उत्पन्न करके उनके अंधविश्वासों को समाप्त कर दिया। आज के वैज्ञानिक मानव ने क्या नहीं कर दिखाया।

यह मनुज,
जिसका गगन में जा रहा है यान
काँपते जिसके करों को देखकर परमाणु।
खोल कर अपना ह्ददय गिरि, सिंधु, भू, आकाश,
है सुना जिसको चुके निज गूढ़तम इतिहास।
खुल गये परदे, रहा अब क्या अज्ञेय
किंतु नर को चाहिये नित विघ्न कुछ दुर्जेय।

धर्म का स्वरूप विकृत होकर जिस प्रकार बाह्माडंबरों में परिवर्तित हो गया था, उसी प्रकार विज्ञान भी अपनी विकृति की ओर है। विज्ञान ने जब तक मानव की मंगल कामना की, तब तक वह उत्तरोत्तर उन्नतिशील रहा। जो विज्ञान मानव-कल्याण के लिए था, आज उसी से मानवता भयभीत है। परमाणु आयुधों के विध्वंसकारी परीक्षणों ने समस्त मानव जगत को भयभीत कर दिया है। धर्म के विस्तृत स्वरूप ने जनता को मूर्खता की ओर अग्रसर किया था, विज्ञान का दुरुपयोग जनता को प्रलय की ओर अग्रसर कर रहा है।

वर्तमान समय में लोगों ने धर्म और संप्रदाय को एक मान लिया है। सांप्रदायिक बुद्धि विनाश का रास्ता दिखाती है। यह ऐसी प्रतिगामी शक्ति है जो हमें पीछे की ओर धकेलती है। मानव को इस प्रवृत्ति से बचना है। अपने-अपने धर्मों का पालन करते हुए भी हमें टकराव की स्थिति उत्पन्न होने नहीं देनी चाहिए। मानव धर्म को स्वीकार कर लेने से सभी शांतिपूर्वक रह सकेंगे। धर्म के नाम पर हमारे देश का पहले ही विभाजन हो चुका है, अब हमें इसे और विभाजित करने के प्रयास नहीं करने चाहिए।

मानव को वर्तमान युग की माँग की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। समस्त विश्व के मानव हमारे भाई हैं, यही भाव विकसित करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। धर्म कभी संकुचित दृष्टिकोण अपनाने के लिए नहीं कहता, अपितु वह तो हमें विशालता प्रदान करता है।

धर्म को लोगों ने धोखे की दुकान बना रखा है। वे उसकी आड़ में स्वार्थ सिद्ध करते हैं। कुछ लोग धर्म को छोड़कर संप्रदाय के जाल में फँस रहे हैं। ये संप्रदाय बाह्य कृत्यों पर जोर देते हैं। ये चिह्नों को अपना कर धर्म के सार-तत्व को मसल देते हैं। धर्म मनुष्य को अंतर्मुखी बनाता है, उसके हृदय के किवाड़ों को खोलता है, उसकी आत्मा को विशाल बनाता है। धर्म व्यक्तिगत विषय है।

धर्म के नाम पर राजनीति करना अत्यंत घृणित कार्य है। सरकार भी धर्म को राजनीति से पृथक् करने का कानून बनाने पर विचार कर रही है। हमारे संविधान में प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गई है। प्रत्येक मानव को अपने विश्वास के अनुसार धर्म अपनाने की पूरी छूट है।

2. हमारे घर के आस-पास एक छोटा-सा मंदिर बना है। लोगों का अंधविश्वास है कि यदि कोई उसके आगे से बिना सिर झुकाए चला जाता है तो उसका कुछ-न-कुछ बुरा अवश्य हो जाता है। यह मात्र एक अंधविश्वास है।


Learnings of NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 11 Sumirini Ke Man Ke

  • Importance of self-awareness in daily life.

  • Understanding different layers of emotions portrayed in poetry.

  • Gaining a deeper insight into Indian culture and philosophy.

  • Developing appreciation for subtle literary devices in the text.

  • Learning to interpret poetic expressions with context in mind.


Important Study Material Links for Hindi Class 12 Chapter 11 Sumirini Ke Man Ke 

S.No. 

Important Study Material Links for Chapter 11 

1.

Class 12 Sumirini Ke Man Ke Questions

2.

Class 12 Sumirini Ke Man Ke Notes



Conclusion

Chapter 11 Sumirini Ke Man Ke, gives us a profound understanding of spirituality through the author's simple yet powerful words. His teachings inspire us to look within for answers and practise true devotion in our daily lives. This chapter is not just a part of the curriculum, but also a guide to living a meaningful and thoughtful life. The NCERT solutions for this chapter will help students fully understand the author's wisdom and make their learning process smooth.


Chapter-wise NCERT Solutions Class 12 Hindi - (Antra)

After familiarising yourself with the Class 12 Hindi 11 Chapter Question Answers, you can access comprehensive NCERT Solutions from all Hindi Class 12 Antra textbook chapters.




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FAQs on NCERT Solutions For Class 12 Hindi Antra (Poem) Chapter 11 Sumirini Ke Man Ke - 2025-26

1. What do the NCERT Solutions for Class 12 Hindi Chapter 11, 'Sumirini Ke Man Ke,' cover for the 2025-26 session?

The NCERT Solutions for 'Sumirini Ke Man Ke' provide detailed, step-by-step answers for all the exercise questions based on the three short essays by Pandit Chandradhar Sharma Guleri included in this chapter. These are:

  • बालक बच गया: Solutions explain the nuances of the story and the author's perspective on education and childhood.

  • घड़ी के पुर्ज़े: Solutions help decode the satire and philosophical arguments presented by the author.

  • ढेले चुन लो: Solutions provide context and analysis for the symbolic and cultural references in the essay.

2. How should one approach the text-based questions for 'Sumirini Ke Man Ke' using the NCERT Solutions?

To effectively use the NCERT Solutions, first attempt to answer the questions yourself after reading the chapter thoroughly. Then, compare your answer with the provided solution. Focus on the structure of the answer, the key points highlighted, and the vocabulary used. The solutions demonstrate the correct method to analyse the author's intent and present a well-reasoned argument as per the CBSE guidelines for the 2025-26 board exams.

3. How do the NCERT Solutions explain the central theme in the essay 'बालक बच गया'?

The NCERT Solutions for 'बालक बच गया' explain the central theme by breaking down the questions related to the conflict between rote learning and a child's natural innocence. The solutions provide model answers that highlight how the author critiques an education system that suppresses a child's innate curiosity in favour of showcasing artificial intelligence. They guide students on how to articulate that the true 'survival' of the boy was the preservation of his childhood instinct.

4. What is the correct method to solve questions related to the author's satire in 'घड़ी के पुर्ज़े'?

The correct method, as demonstrated in the NCERT Solutions, is to first identify the analogy being used (comparing religion/dharma to the inner workings of a watch). The solutions show how to frame answers that explain the author's satirical argument: just as one doesn't need to be a watchmaker to use a watch, one doesn't need to be a religious scholar to practice dharma. The solutions help in articulating this critique of religious gatekeeping effectively.

5. What is a common mistake students make when answering questions about 'ढेले चुन लो' and how do the NCERT solutions help avoid it?

A common mistake is to describe the folk custom literally without explaining its symbolic significance. Students often miss the author's underlying message about faith, tradition, and superstition. The NCERT solutions help by providing answers that connect the act of choosing clay lumps to the larger themes of predestination and belief systems, ensuring the answer has the depth required for full marks in the CBSE examination.

6. Why is it important to write structured answers for the philosophical questions in 'Sumirini Ke Man Ke' as per the NCERT Solutions?

Writing structured, step-by-step answers is crucial because the essays in 'Sumirini Ke Man Ke' are built on deep philosophical and satirical arguments. The NCERT solutions model this structure to help students:

  • Present a logical flow of thought that is easy for the examiner to follow.

  • Ensure all parts of the question are addressed, which is key for scoring well in board exams.

  • Demonstrate a clear understanding of the author's complex ideas rather than just giving a superficial summary.

7. How do the NCERT Solutions for Chapter 11 help differentiate between the author's literal statements and his figurative or satirical intent?

The solutions achieve this by providing clear explanations and annotations for each answer. For instance, in 'घड़ी के पुर्ज़े,' the literal discussion is about watches, but the solutions explicitly state that the figurative meaning is a critique of religious authority. They guide students to use phrases that signal this interpretation, such as 'यहाँ लेखक का तात्पर्य...' (Here, the author's meaning is...) or 'इस उदाहरण के माध्यम से...' (Through this example...), which is a key skill for literary analysis.

8. Beyond providing direct answers, how can a student use the NCERT Solutions for 'Sumirini Ke Man Ke' to improve their overall answer-writing skills?

A student can use the NCERT Solutions as a training tool. Instead of just copying the answers, one should analyse how the answers are constructed. This includes observing the use of specific keywords from the chapter, the way textual evidence is integrated to support a point, and how the conclusion summarises the main argument. By using the solutions as a model, students can improve their ability to write concise, coherent, and high-scoring answers for any question from the Hindi syllabus.

9. Who is the author of the NCERT Class 12 Hindi chapter 'Sumirini Ke Man Ke'?

The chapter 'Sumirini Ke Man Ke' from the Class 12 Hindi Antra textbook is written by the renowned author Pandit Chandradhar Sharma Guleri. This chapter is not a single story but a collection of three short, thought-provoking essays that reflect his distinct style of writing, blending humour, satire, and deep philosophical insight.

10. Do the NCERT Solutions for Chapter 11 provide insights into the author's unique language and style?

Yes, the solutions implicitly guide students on the author's style. By solving questions related to satire and symbolism, the solutions demonstrate how Pandit Chandradhar Sharma Guleri used simple language and everyday analogies (like a watch or clay lumps) to discuss complex philosophical ideas. The model answers are framed to reflect this unique style, helping students appreciate and write about his literary technique.