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NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 - In Hindi

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NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem in Hindi Medium

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NCERT, which stands for The National Council of Educational Research and Training, is responsible for designing and publishing textbooks for all the classes and subjects. NCERT Textbooks covered all the topics and are applicable to the Central Board of Secondary Education (CBSE) and various state boards.


Class:

NCERT Solutions for Class 12

Subject:

Class 12 Biology

Chapter Name:

Chapter 14 - Ecosystem

Content-Type:

Text, Videos, Images and PDF Format

Academic Year:

2024-25

Medium:

English and Hindi

Available Materials:

  • Chapter Wise

  • Exercise Wise

Other Materials

  • Important Questions

  • Revision Notes



We, at Vedantu, offer free NCERT Solutions in English medium and Hindi medium for all the classes as well. Created by subject matter experts, these NCERT Solutions in Hindi are very helpful to the students of all classes. 

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Access NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 – पारितंत्र

1. रिक्त स्थानों को भरो – 

1.पादपों को ……. कहते हैं; क्योंकि ये कार्बन डाइऑक्साइड का स्थिरीकरण करते हैं।

उत्तर: स्वपोषी 


2. पादप (वृक्ष) द्वारा प्रमुख पारितंत्र का पिरामिड (संख्या का) …… प्रकार का है।

उत्तर: उल्टा 


3. एक जलीय पारितंत्र में उत्पादकता का सीमा कारक ……. है। 

उत्तर: प्रकाश 


4. हमारे पारितंत्र में सामान्य अपरदाहारी …….. हैं। 

उत्तर: केंचुए तथा सूक्ष्मजीव 


5. पृथ्वी पर कार्बन का प्रमुख भंडार ……. है।

उत्तर: समुद्र। 


2. एक खाद्य श्रृंखला में निम्नलिखित में सर्वाधिक संख्या किसकी होती है? 

(क) उत्पादक 

(ख) प्राथमिक उपभोक्ता 

(ग) द्वितीयक उपभोक्ता 

(घ) अपघटक 

 उत्तर: एक खाद्य श्रृंखला में सर्वाधिक संख्या (घ) अपघटक की होती है। 


3. एक झील में द्वितीय (दूसरा) पोषण स्तर होता है – 

(क) पादपप्लवक 

(ख) प्राणिप्लवक 

(ग) नितलक (बैनथॉस) 

(घ) मछलियाँ 

 उत्तर: एक झील में द्वितीय (दूसरा) पोषण स्तर (ख) प्राणिप्लवक होता है। 


4. द्वितीयक उत्पादक हैं – 

(क) शाकाहारी (शाकभक्षी) 

(ख) उत्पादक 

(ग) मांसाहारी (मांसभक्षी) 

(घ) इनमें से कोई नहीं 

 उत्तर: द्वितीयक उत्पादक हैं  (क) शाकाहारी (शाकभक्षी)। 


 5. प्रासंगिक सौर विकिरण में प्रकाश संश्लेषणात्मक सक्रिय विकिरण का क्या प्रतिशत होता है? 

(क) 100

(ख) 50%

(ग) 1 - 5 %

(घ) 2-10%

उत्तर: प्रासंगिक सौर विकिरण में प्रकाश संश्लेषणात्मक सक्रिय विकिरण का (घ) 2 - 10% होता है।


6. निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट करें – 

(क) चारण खाद्य श्रृंखला एवं अपरद खाद्य श्रृंखला 

उत्तर:  चारण खाद्य श्रृंखला एवं अपरद खाद्य श्रृंखला

चारण खाद्य श्रृंखला

अपरद खाद्य श्रृंखला

इस खाद्य श्रृंखला में, ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती है।

अपरद से प्राप्त होता है, जो चारण खाद्य श्रृंखला के पोषण स्तरों में उत्पन्न होती है।

यह उत्पादकों से प्रारंभ होती है, जो प्रथम पोषण स्तर में उपस्थित होता है।

यह पादपों तथा प्राणियों (पशुओं) के मृत अवशेष जैसे अपरद से प्रारंभ होती है, जो अपघट या अपरदहारी द्वारा खाया जाता है।

यह खाद्य श्रृंखला प्रायः पर बड़ी होती है।

यह प्रायः चारण खाद्य श्रृंखला की अपेक्षा छोटा होता है।


(ख) उत्पादन एवं अपघटन 

 उत्तर: उत्पादन एवं अपघटन

उत्पादन

अपघटन

यह उत्पादकों द्वारा कार्बनिक पदार्थ (खाद्य) उत्पादन करने की दर होती है।

कार्बनिक कच्चे पदार्थों जैसे- अपघटकों की सहायता से मृत पौधों तथा जीवों के अवशेष से जटिल कार्बनिक पदार्थ या जैव मात्रा में खंडित करने की प्रक्रिया को अपघटन कहते हैं।

यह उत्पादकों की प्रकाश संश्लेषण क्षमता पर निर्भर करता है।

यह अपघटक की सहायता से उत्पन्न होता है।

प्राथमिक उत्पादन के लिए पौधों द्वारा सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है।

अपघटकों द्वारा अपघटन के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है।


(ग) ऊर्ध्ववर्ती (शिखरांश) एवं अधोवर्ती पिरामिड

 उत्तर:  उधर्व वर्ती (शिखरांश) एवं अधोवर्ती पिरैमिड

उधर्व वर्ती (शिखरांश) 

अधोवर्ती पिरैमिड

ऊर्जा का पिरैमिड हमेशा उर्ध्ववर्ती होता है।

जैव मात्रा का पिरामिड और संख्याओं का पिरामिड उल्टा हो सकता है।

पारिस्थितिकी तंत्र के उत्पादक स्तर में जीवों तथा जैव मात्रा की संख्या उच्चतम होती है, जो खाद्य श्रृंखला में प्रत्येक पोषण स्तर पर कम होता जाता है।

पारिस्थितिकी तंत्र के उत्पादक स्तर में जीवों और जैव मात्रा की संख्या सबसे कम होती है, जो प्रत्येक पोषण स्तर पर बढ़ती जाती है।


7. निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट करें – 

(क) खाद्य श्रृंखला तथा खाद्य जाल (वेब) 

 उत्तर: (क) खाद्य श्रृंखला तथा खाद्य जाल (वेब)

खाद्य श्रृंखला

खाद्य जाल (वेब)

खाद्य श्रृंखला उच्च स्तर से निम्न स्तर तक ऊर्जा के स्थानांतरण के लिए बने होते हैं।

परस्पर अंतर निर्भरता के कारण खाद्य जाल (वेब) की रचना होती है।

एक जीव एक समय में एक ही पौष्टिक स्तर पर निवास कर सकता है।

एक जीव एक समय में कई पोषण स्तर पर निवास कर सकता है।

यह पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता को कम करता है और कम अनुकूल होता है।

यह पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता को कम करता है और अधिक अनुकूल होता है।


(ख) लिटर (कर्कट) एवं अपरद

लिटर(कर्कट)

अपरद

पृथ्वी की सतह पर सभी प्रकार के अपशिष्ट पदार्थ लिटर (कर्कट) होते हैं।

पृथ्वी के सतह के ऊपर और नीचे मृत जीवों और पौधों के अवशेष अपरद बनाते हैं।

इसमें जैव-निम्नीकरणीय और अजैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट दोनों शामिल किया जाता है।

इसमें केवल जैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट होते हैं।


(ग) प्राथमिक एवं द्वितीयक उत्पादकता

प्राथमिक उत्पादकता

द्वितीयक उत्पादकता

उत्पादक द्वारा एक निश्चित समयावधि में कार्बनिक पदार्थ के उत्पादन की मात्रा की दर प्राथमिक उत्पादकता है।

उपभोक्ता द्वारा एक निश्चित समयावधि में कार्बनिक पदार्थ के उत्पादन की मात्रा की दर द्वितीयक उत्पादकता है।

यह प्रकाश संश्लेषण के कारण होता है।

यह शाकाहारियों तथा परभक्षियों द्वारा किया जाता है।

 

8. पारिस्थितिकी तंत्र के घटकों की व्याख्या कीजिए। 

                             या 

पारिस्थितिकी तंत्र की परिभाषा लिखिए। 

उत्तर: स्थलमंडल, जलमंडल तथा वायुमंडल का वह क्षेत्र जिसमें जीवधारी रहते हैं जैवमंडल (biosphere) कहलाता है। जैव मंडल में पाए जाने वाले जैवीय (biotic) तथा अजैवीय (abiotic) घटकों के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन पारितंत्र (ecosystem) कहलाता है। पारितंत्र या पारिस्थितिक तंत्र (ecosystem) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टैन्सले (Tansley, 1935) ने किया था। यदि जीवमंडल में जैविक, अजैविक अंश तथा भूगर्भीय, रासायनिक व भौतिक लक्षणों को शामिल करें तो यह पारिस्थितिक तंत्र बनता है। 

पारिस्थितिक तंत्र सीमित व निश्चित भौतिक वातावरण का प्राकृतिक तंत्र है जिसमें जीवीय (biotic) तथा अजीवीय (abiotic) अंशों की संरचना और कार्यों का पारस्परिक आर्थिक सम्बन्ध संतुलन में रहता है। इसमें पदार्थ तथा ऊर्जा का प्रवाह सुनियोजित मार्गों से होता है। 

पारिस्थितिकी तंत्र के घटक पारिस्थितिकी तंत्र के मुख्यतः दो घटक होते हैं- जैविक तथा अजैविक घटक। 

(i) जैविक घटक (Biotic Components) – पारिस्थितिक तंत्र में तीन प्रकार के जैविक घटक होते हैं- स्वपोषी (autotrophic), परपोषी (heterotrophic) तथा अपघटक (decomposers)। 

(अ) स्वपोषी घटक (Autotrophic Component) – हरे पादप पारितंत्र के स्वपोषी घटक होते हैं। ये सौर ऊर्जा तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में CO2 तथा जल से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। हरे पादप उत्पादक (producer) भी कहलाते हैं। हरे पौधों में संचित खाद्य पदार्थ दूसरे जीवों का भोजन है। 


Ecosystem


(ब) परपोषी घटक (Heterotrophic Components) – ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते, ये भोजन के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों पर निर्भर रहते हैं। इन्हें उपभोक्ता (consumer) कहते हैं। उपभोक्ता तीन प्रकार के होते हैं – 

  1. प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता अथवा शाकाहारी (Herbivores) – ये उपभोक्ता अपना भोजन सीधे उत्पादकों (हरे पौधों) से प्राप्त करते हैं। इन्हें शाकाहारी कहते हैं। जैसे-गाय, बकरी, भैंस, चूहा, हिरण, खरगोश आदि। 

  2. द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता अथवा मांसाहारी (Carnivores) – द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता भोजन के लिए शाकाहारी जंतुओं का भक्षण करते हैं, इन्हें मांसाहारी कहते हैं जैसे- मेढक, साँप आदि। 

  3. तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता – तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता से भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे - शेर, चीता, बाघ आदि। कुछ जंतु सर्वाहारी (Omnivores) होते हैं, ये पौधों अथवा जंतुओं से भोजन प्राप्त कर सकते हैं। जैसे - कुत्ता, बिल्ली, मनुष्य आदि।


(स) अपघटक (Decomposers) – ये जीव कार्बनिक पदार्थों को उनके अवयवों में तोड़ देते हैं। ये मुख्यत: उत्पादक व उपभोक्ता के मृत शरीर का अपघटन करते हैं। इन्हें मृतजीवी भी कहते हैं। सामान्यतः ये जीवाणु व कवक होते हैं। इसके फलस्वरूप प्रकृति में खनिज पदार्थों का चक्रण होता रहता है। उत्पादक, उपभोक्ता व अपघटक सभी मिलकर बायोमास (biomass) बनाते हैं। 


(ii) अजैविक घटक (Abiotic Components) – किसी भी पारितंत्र के अजैविक घटक तीन भागों में विभाजित किए जा सकते हैं – 

  1. जलवायवीय घटक (Climatic Components) – जल, ताप, प्रकाश आदि। 

  2. अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic Substances) –C, O, N, CO2 आदि। ये विभिन्न चक्रों के माध्यम से जैव-जगत में प्रवेश करते हैं। 

  3. कार्बनिक पदार्थ (Organic Substances) – प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा आदि। ये अपघटित होकर पुनः सरल अवयवों में बदल जाते हैं। 

कार्यात्मक दृष्टि से अजैविक घटक दो भागों में विभाजित किए जाते हैं – 

  1. पदार्थ (Materials) – मृदा, वायुमण्डल के पदार्थ जैसे- वायु, गैस, जल, CO2 , O2 , N2 लवण जैसे - Ca , S, P कार्बनिक अम्ल आदि। 

  2. ऊर्जा (Energy) – विभिन्न प्रकार की ऊर्जा जैसे- सौर ऊर्जा, तापीय ऊर्जा, गतिज ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा आदि। 


9. पारिस्थितिक पिरैमिड को परिभाषित कीजिए तथा जैव मात्रा या जैवभार तथा संख्या के पिरैमिडों की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए। 

उत्तर: पारिस्थितिक पिरैमिड -  

पारितंत्र में खाद्य श्रृंखला के विभिन्न पोषक स्तरों में जीवधारियों के सम्बन्धों का रेखीय चित्रण पारिस्थितिक पिरैमिड (pyramid) कहलाता है। पिरैमिड पारितंत्र में जीव की संख्या, जीवभार तथा जैव ऊर्जा को प्रदर्शित करते हैं। इनका सर्वप्रथम प्रदर्शन एल्टन (Elton,1927) ने किया था। इनमें सबसे नीचे का पोषी स्तर उत्पादक का होता है तथा सबसे ऊपर का पोषी स्तर सर्वोच्च उपभोक्ता का होता है।

(i) जीवभार का पिरैमिड (Pyramid of Biomass) – जीव के ताजे (fresh) अथवा शुष्क (dry) भार के रूप में प्रत्येक पोषी स्तर को मापा जाता है। स्थलीय पारितंत्र में उत्पादक का जैव भार सर्वाधिक होता है। अतः पिरैमिड सीधा रहता है। तालाबीय पारितंत्र में उत्पादक का भार सबसे कम होता है। अतः पिरैमिड उल्टा बनता है। जीवभार को g/mमें मापा जाता है। 


Pyramid of Biomass


(ii) संख्या का पिरैमिड (Pyramid of Numbers) – इस पिरैमिड में विभिन्न पोषी स्तर के जीवों की संख्या को प्रदर्शित करते हैं। घास तथा तालाब पारितंत्र में संख्या का पिरैमिड सीधा (upright) होता है। वृक्ष पारितंत्र में उत्पादकों की संख्या सबसे कम (एक वृक्ष) तथा अंतिम उपभोक्ता की संख्या सर्वाधिक होती है अतः यह पिरैमिड उल्टा होता है। 


Pyramid of Numbers


10. प्राथमिक उत्पादकता क्या है? उन कारकों की संक्षेप में चर्चा कीजिए जो प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करते हैं। 

उत्तर: प्राथमिक उत्पादकता (Primary Productivity) – हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करके कार्बनिक पदार्थों में संचित कर देते हैं। यह क्रिया पर्णहरित तथा सौर प्रकाश की उपस्थिति में CO2 तथा जल के उपयोग द्वारा होती है। इस क्रिया के फलस्वरूप जैव जगत में सौर ऊर्जा का निरंतर निवेश होता रहता है। 

प्रकाश संश्लेषण द्वारा संचित ऊर्जा को प्राथमिक उत्पादन (primary production) कहते हैं। एक निश्चित अवधि में प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादित जैवभार (biomass) या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को भार (g/m2) या ऊर्जा (kcal/m2) के रूप में अभिव्यक्त करते हैं। ऊर्जा की संचय दर को प्राथमिक उत्पादकता (primary productivity) कहते हैं। 

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में हरे पौधों द्वारा कार्बनिक पदार्थों में स्थिर (fixed) सौर ऊर्जा की कुल मात्रा को सकल प्राथमिक उत्पादन (Gross Primary Production  G.P.P) कहते हैं। 

प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Primary Production)-

प्राथमिक उत्पादकता एक सुनिश्चित क्षेत्र में पादप प्रजातियों की प्रकृति पर निर्भर करती है। यह विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय कारकों (प्रकाश, ताप, वर्षा, आर्द्रता, वायु, वायु गति, मृदा का संगठन, स्थलाकृतिक कारक तथा सूक्ष्म जैविक कारक आदि), पोषकों की उपलब्धता (मृदा कारक) तथा पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्षमता पर निर्भर करती है। इस कारण विभिन्न पारितंत्र में प्राथमिक उत्पादकता भिन्न-भिन्न होती है। मरुस्थल में प्रकाश तीव्र होता है, ताप की अधिकता और जल की कमी होती है। अत: इन क्षेत्रों में जल की कमी के कारण पोषकों की उपलब्धता कम रहती है। इस प्रकार प्राथमिक उत्पादकता प्रभावित होती है। इसके विपरीत उपयुक्त प्रकाश एवं ताप की उपलब्धता के कारण शीतोष्ण प्रदेशों में उत्पादन अधिक होता है। 


11. अपघटन की परिभाषा दीजिए तथा अपघटन की प्रक्रिया एवं उसके उत्पादों की व्याख्या कीजिए। 

उत्तर: अपघटन (Decomposition) – अपघटकों (Decomposers) जैसे- जीवाणु, कवक आदि द्वारा जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों जैसे-कार्बन डाइऑक्साइड, जल एवं पोषक तत्वों में विघटित करने की प्रक्रिया को अपघटन (Decomposition) कहते हैं। पादपों के मृत अवशेष जैसे- पत्तियाँ, छाल, फूल आदि तथा जंतुओं के मृत अवशेष, मल मूत्र आदि को अपरद (डेट्राइटस-Detritus) कहते हैं। 

अपघटन की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण चरण खण्डन, निक्षालन, अपचयन, ह्यूमस निर्माण तथा पोषक तत्वों का मुक्त होना है। केंचुए आदि को अपरदाहारी (Detritivores) कहते हैं। ये अपरदे को छोटे-छोटे कणों में खंडित करते हैं। इस प्रक्रिया को खंडन (Fragmentation) कहते हैं। 

निक्षालन (leaching) प्रक्रिया में जल में घुलनशील अकार्बनिक पोषक मृदा में प्रवेश कर जाते हैं। शेष पदार्थ का अपचय जीवाणु तथा कवक द्वारा होता है। ह्यूमस निर्माण (Humification) के फलस्वरूप गहरे भूरे-काले रंग का भुरभुरा पदार्थ ह्युमस (humus) बनता है। खनिजीकरण (Mineralization) के फलस्वरूप ह्युमस (Humus) से पोषक तत्व मुक्त हो जाते हैं। गर्म तथा आर्द्र वातावरण में अपघटन प्रक्रिया तीव्र होती है। 


12. एक पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह का वर्णन कीजिए। (2015) 

उत्तर: पारितंत्र में ऊर्जा - प्रवाह पारितंत्र को ऊर्जा मुख्य रूप से सौर ऊर्जा के रूप में प्राप्त होती है। सौर ऊर्जा का उपयोग हरे पादप (उत्पादक) ही कर सकते हैं। उत्पादक (हरे पौधे) प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलकर कार्बनिक पदार्थों के रूप में संचित करते हैं। खाद्य पदार्थ के रूप में ऊर्जा उत्पादक (producers) से विभिन्न स्तर के उपभोक्ताओं (Consumers) को प्राप्त होती है। ऊर्जा को प्रवाह एकदिशीय (Unidirectional) होता है। 


Energy in the Ecosystem


प्रत्येक खाद्य स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा का 90% जीवधारी की जैविक क्रियाओं में खर्च हो जाता है, केवल 10% संचित ऊर्जा ही अगले खाद्य स्तर को हस्तांतरित होती है। हस्तांतरण के समय भी कुछ

ऊर्जा का ह्रास होता है। इस प्रकार एक खाद्य स्तर से दूसरे खाद्य स्तर में केवल 10% ऊर्जा हस्तांतरित होती है। 

उदाहरणार्थ – एक खाद्य श्रृंखला में यदि उत्पादक के पास 100% ऊर्जा है तो प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता (शाकाहारी) को केवल 10% ऊर्जा मिलेगी। इससे दूसरी श्रेणी के उपभोक्ता (मांसाहारी) को केवल 1% ऊर्जा मिलेगी। इसी प्रकार अगली श्रेणी के उपभोक्ता को 0.1% ऊर्जा मिलती है। इस प्रकार एक से दूसरी श्रेणी के जीव को केवल 10% ऊर्जा पिछली श्रेणी से प्राप्त हो सकती है। उपभोक्ता में सर्वाधिक ऊर्जा केवल शाकाहारियों को प्राप्त है। पारितंत्र में ऊर्जा को एक पक्षीय प्रवाह तथा अकार्बनिक पदार्थों के परिसंचरण का पारिस्थितिकी सिद्धांत सभी जीवों एवं पर्यावरण पर लागू होता है। 


Energy in the Ecosystem


13. एक पारिस्थितिक तंत्र में एक अवसादी चक्र की महत्वपूर्ण विशिष्टताओं का वर्णन करें। 

 उत्तर: एक पारिस्थितिक तंत्र में एक अवसादीय चक्र की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ इस प्रकार हैं–   

  1. अवसादी चक्र (जैसे- सल्फर एवं फास्फोरस चक्र) के भंडार धरती के पटल में स्थित होते हैं। 

  2. पर्यावरणीय घटक (जैसे- मिट्टी, आर्द्रता, pH, ताप आदि) वायुमण्डल में पोषकों के मुक्त होने की दर तय करते हैं। 

  3. एक भण्डार की क्रियाशीलता, कमी को पूरा करने के लिए होती है जबकि अन्तर्वाह एवं बहिर्वाह की दर के असंतुलन के कारण संपन्न होती है। 

  4. अवसादी चक्र की गति गैसीय चक्र की अपेक्षा बहुत धीमी होती है। 

  5. वायुमण्डल में अवसादी चक्र का निवेश कार्बन निवेश की अपेक्षा बहुत कम होता है। 

  6. अवसादी पोषक तत्वों की एक बहुत घनी मात्रा पृथ्वी के अन्दर अचलायमान स्थिति में संचित रहती है। 


14. एक पारिस्थितिक तंत्र में कार्बन चक्रण की महत्वपूर्ण विशिष्टताओं की रूपरेखा प्रस्तुत करें। 

 उत्तर: एक पारितंत्र में कार्बन चक्रण की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ इस प्रकार हैं – 

  1. जीवों के शुष्क भार का 49% भाग कार्बन से बना होता है। 

  2. समुद्र में 71% कार्बन विलेय के रूप में विद्यमान है। यह सागरीय कार्बन भण्डार वायुमंडल में CO2 की मात्रा को नियमित करता है।

  3. जीवाश्मी ईंधन भी कार्बन के एक भण्डार का प्रतिनिधित्व करता है। 

  4. कार्बन चक्र वायुमंडल, सागर तथा जीवित एवं मृत जीवों द्वारा संपन्न होता है। 

  5. अनुमानतः जैव मंडल में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा प्रतिवर्ष 4 X 1013 किग्रा कार्बन का स्थिरीकरण होता है। 

  6. एक महत्त्वपूर्ण कार्बन की मात्रा के CO2 रूप में उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं की श्वसन क्रिया के माध्यम से वायुमंडल में वापस आती है। भूमि एवं नगरों में कचरा सामग्री एवं मृत कार्बनिक सामग्री के अपघटन की प्रक्रियाओं द्वारा भी CO2 की काफी मात्रा अपघटकों द्वारा छोड़ी जाती है। 

  7. यौगिकीकृत कार्बन की कुछ मात्रा अवसादों में नष्ट होती है और संचरण द्वारा निकाली जाती है। 

  8. लकड़ी के जलाने, जंगली आग एवं जीवाश्मी ईंधन के जलने के कारण, कार्बनिक सामग्री, ज्वालामुखीय क्रियाओं आदि अतिरिक्त स्रोतों द्वारा वायुमंडल में CO2 को मुक्त किया जाता है।


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