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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 3 Upbhoktavad ki Sanskriti

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Class 9 hindi upbhoktavad ki sanskriti question answer helps you learn about consumer culture today. This chapter talks about how buying things affects our daily life. Hindi class 9 upbhoktavad ki sanskriti question answer makes these ideas simple to read.

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Key points covered:
• Answers about how advertising changes what we want to buy
• Simple explanations of consumer culture in modern times
• Solutions for all ncert class 9 upbhoktavad ki sanskriti exercises
• Easy notes on how shopping habits affect society
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Master Class 9 Hindi Upbhoktavad ki Sanskriti Question Answer with Expert Solutions

पाठ्य पुस्तक के प्रश्न-उत्तर: 

1. लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’से अभिप्राय केवल  उपभोग-सुख  ही नहीं  है अपितु अन्य  प्रकार के मानसिक, शारीरिक और सूक्ष्म आराम भी ‘सुख’ ही कहलाते हैं। लेकिन वर्तमान युग नेतो जैसी इसकी परिभाषा ही बदल दी हो, अब तो लोग  केवल उपभोग के साधनों के भोगने को ही ‘सुख’ मानने लगे हैं।


2. आज  की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?

उत्तर: उपभोक्तावादी  संस्कृति  के कारण  हमारा  दैनिक जीवन पूरी तरहसे प्रभावित हो रहा है।अब व्यक्ति उपभोग को ही सुख समझने लगा है  इस से हमारी सांस्कृतिक पहचान, आस्थाएँ, परम्पराएँ घटती जा रही हैं।इसलिए लोग अधिकाधिक वस्तुओं का उपभोग कर लेना चाहते हैं। लोग बहुविज्ञापित वस्तुओं को खरीदकर दिखावा करतेहैं। इस उपभोक्तावादी संस्कृति से लोग अपनी प्रतिष्ठा को जोड़कर भी देखने लगे हैं। हम जोभी खाते-पीते या ओढ़ते-पहनते हैं हर एक चीज़ विज्ञापनों से प्रभावित नज़र आती है और देखा-देख उसकी ओर ही हर कोई आगे बढ़ते जाते हैं। संस्कृति से मानवीय संबंध भीकमजोर हो रहे हैं। अमीर-गरीब के मध्यदूरी बढ़ने से समाज के लोगों के मन में एक-दूसरे के प्रति अशांति और आक्रोश की बढ़ोतरी होर ही है।


3. लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?

उत्तर: गाँधी जी सामाजिक मर्यादाओं तथा नैतिकता के पक्षधर थे।वे सादा जीवन, उच्च विचार के कायल थे। वे चाहते थे कि समाज में आपसी प्रेम, भाईचारा, और सामाजिक सरोकार बढ़े। लोग सदाचार, संयम और नैतिकता का आचरण करें। उपभोक्तावादी संस्कृति इस सबके विपरीत चलती है। वह केवल भोग कोही बढ़ावा देती है और नैतिकता तथा मर्यादा को ह्रास करती है। गाँधी जी चाहते थे कि हम भारतीय अपनी बुनियाद पर कायम रहें, अर्थात् अपनी संस्कृति को न त्यागें। परंतु आज उपभोक्तावादी संस्कृति के नाम पर यह बदलाव हमारी अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी मिटाते जा रहे हैं। मनुष्य स्व- केंद्रित होता जा रहा है इसलिए उन्होंने उपभोक्तावादी संस्कृति को इस समाज हेतु एक चुनौती कहा।



4. आशय स्पष्ट कीजिए:

4.1 जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।

उत्तर: उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव परोक्ष है इससे  प्रभावित होकर हमारे चरित्र में बहुत से परिवर्तन आ रहे हैं।यह संस्कृति अधिकाधिक उपभोग को बढ़ावा देती है। पश्चिमी जीवन शैली को बढाने वाली तथा दिखावा प्रधान होने के कारण विशिष्ट जन इसे अपनाते हैं और महँगी वस्तुओं के उपयोग को प्रतिष्ठा का प्रतीक मानते हैं ।उपभोग को ही लोग अपने जीवन का सच्चा सुख मानकर भौतिक साधनों का उपयोग करने लगते हैं। इससे वे  गुलाम बनकर रह जाते हैं बल्कि अपने जीवन का उद्देश्य ही उपभोग को मान बैठते हैं ।जिससे उनका चरित्र भी प्रभावित होता जा रहा है।

4.2 प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।

उत्तर: प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं जिनमें से कुछ तो अपने आप में ही काफी हास्यस्पद भी हैं।हास्यस्पद का अर्थ  ही हँसने योग्य होता है ।लोग समाज में प्रतिष्ठा दिखाने के लिए तरह-तरह के तौर तरीके अपनाते हैं। उनमें कुछ अनुकरणीय होते हैं तो कुछ उपहास का कारण बन जाते हैजिससे पाठक को न चाहते हुए भी हँसी आ ही जाती है पश्चिमी देशों में लोग अपने अंतिम संस्कार अंतिम विश्राम हेतु-अधिक-से-अधिक मूल्य देकर सुंदर जगह सुनिश्चित करके अपनी झूठी प्रतिष्ठा दिखाते है उनका ऐसा करना नितांत हास्यास्पद है।


रचना और अभिव्यक्ति

5. कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं? क्यों ?

उत्तर: विज्ञापनों का प्रभाव काफी सूक्ष्म और सम्मोहक होता है।इसकी भाषा अपनी ओर आकर्षित करने वाली होती है। वे हमारी आँखों और कानों को विभिन्न दृश्यों और ध्वनियों के सहारे प्रभावित करते हैं। वे हमारे मन में वस्तुओं के प्रति भ्रामक आकर्षण जगा देते हैं। बच्चे तो उनके बिना रह ही नहीं पाते। हम वही खरीदते हैं जो विज्ञापन हमें दिखाते हैं इसलिए कई बार अनुपयोगी वस्तुएँ भी हमें अपनी ओर लालायित कर देती हैं और हम उन्हें खरीदने को तत्पर हो जाते हैं।


6. आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।

उत्तर: हमारे अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार उसकी गुणवत्ता होनी चाहिए न कि विज्ञापन क्योंकि-

1. विज्ञापन हमारे मन में उस वस्तुके प्रतिभ्रामक आकर्षण पैदा कर देते हैं।

2. विज्ञापन हमें चीजों  के गुण का ज्ञान नहीं देते केवल उनकी विविधता, उपलब्धता या उनके मूल्य आदि का ही ज्ञान नहीं देते।

3. विज्ञापन के द्वारा हम कभी भी किसी चीज़ के गुण और दोष की सच्चाई का अनुमान नहीं लगा सकते। इसलिए हमें अपनी बुद्धि- विवेक से करके  ही  आवश्यकतानुसार वस्तुएँ खरीदनी  चाहिए।


7. पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर: आजकल दिखावे की संस्कृति पनप रही है। यह बात बिल्कुल सत्य है। वर्तमान युग में लोग कुछ हट कर दिख ने के चक्कर में मूल्यवान और प्रसिद्ध सौंदर्य प्रसाधनों, म्यूजिक सिस्टम, मोबाईलफ़ोन, घड़ी, और कपड़े खरीदते हैं क्योंकि इन चीजों से आजकल लोगों की हैसियत आंकी जाती है इसलिए लोग उन्हीं चीजों को अपना  रहे  हैं, जो  दुनिया  की नजरों में अच्छी है नए-नए परिधान और फैशनेबल वस्त्र दिखावे की संस्कृति को ही बढ़ावा दे रहे हैं।इतनाहीनहीं लोग तोमरने के बाद अपनी कब्र के लिए लाखों रुपए खर्च करने लगेहैं ताकि वे दुनिया में अपनी प्रतिष्ठा बनाएं रखें। यह दिखावे की संस्कृति नहीं तो और क्या । "दिखावे की संस्कृति" के बहुत से दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं। इससे हमारा चरित्र अपनेआपही बदलता जा रहा है। हमारी अपनी सांस्कृतिक पहचान, परम्पराएँ, आस्थाएँ घटती जा रही है। हमारे सामाजिक सम्बन्ध कमज़ोर पड़ने लगा है। मन में अशांति एवं आक्रोश पैदाहो रहा है। नैतिक मर्यादाओं में कमी आ रही हैंऔर व्यक्तिवाद, स्वार्थ, भोगवाद आदि कुप्रवृत्तियाँ का साम्राज्य पनप रहा है।


8. आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उत्तर: आज की उपभोक्ता संस्कृति ने हमारे रीति रिवाजों और त्योहारों    को भी काफी हद तक प्रभावित कर रखा है। अब त्योहारों का मतलब भी बदल गया है अब ये त्योहार,रीति रिवाज एक- दूसरे से अच्छे लगने की प्रतिस्पर्धा हो गई है। नई नई कम्पनियाँ जैसे इस अवसर की तलाश में रहती हैं कि किसी भी प्रकार त्योहार के नाम पर ज्यादा से ज्यादा ग्राहक को विज्ञापन द्वारा आकर्षित करे। पहले त्यौहार में सारे काम परिवार के लोग मिलजुल कर करते थे। आज सारी चीजें बाजार से तैयार खरीद ली जाती है और बचाकुचा काम नौकर से करवा लिया जाता है।


9. 'धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।'

इस वाक्य में बदल रहा है क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।

(क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त लगभग पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।

उत्तर:

1. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। (‘धीरे-धीरे' रीतिवाचक क्रिया-विशेषणहैऔर'सब-कुछ'परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण है)

2. आपको लुभाने की जी-तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती है।(‘निरंतर’-रीतिवाचक क्रिया-विशेषण है)

3. सामंती संस्कृति के तत्त्वे भारत में पहले भी रहे हैं। (‘पहले’-कालवाचक क्रिया-विशेषण)

4. अमरीका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है। (आज और कल - कालवाचक क्रिया-विशेषण)

5. हमारे सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है। (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण)


(ख) धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज्यादा, यहाँ, उधर, बाहर-इन क्रिया-विशेषण शब्दों को प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।

उत्तर:

1. धीरे-धीरे - धीरे-धीरे मेरा परिचय उससे हुआ।

2. जोर-से - पानी बहुत जोर-से बरस रहा है।

3. लगातार - लगातार वर्षा पड़ रही है।

4. हमेशा - वह हमेशा झूठ बोलता है।

5. आजकल - शान आजकल रोज़ दौड़ लगता है।

6. कम - हमारा दुख शीतल के सामने बहुत कम है।

7. ज्यादा - मैं सुबह से ही कुछ ज़्यादा खा रही हूँ।

8. यहाँ - तुम यहाँ आकर बैठना।

9. उधर - मैंने जान बूझ कर उसे उधर नहीं देखा।

10. बाहर - चिड़िया का बच्चा भूख के मारे बिलख रहा है।


(ग) नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रिया-विशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए।

1. कल रात से निरंतर बारिश हो रही है।

उत्तर:

निरंतर - रीतिवाचक क्रिया-विशेषण

कल रात - कालवाचक क्रियाविशेषण


2. पेड़ पर लगे पके आम देखकर बच्चों के मुँह में पानी आ गया।

उत्तर:

पके - विशेषण

मुँह में - स्थानवचकक्रिया - विशेषण


3. रसोईघर से आती हल्की पुलाव की खुशबू से मुझे ज़ोरों की भूख लग गई।

उत्तर: 

हलकी - विशेषण

जोरों की - रीतिवाचक क्रिया-विशेषण


4. उतना ही खाओ जितनी भूख है।

उत्तर: उतना, जितनी (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण) 


5. विलासिता की वस्तुओं से आजकल बाजार भरा पड़ा है।

उत्तर: आजकल (कालवाचक क्रिया-विशेषण) बाज़ार (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)


Benefits of NCERT Solutions for Class 9 Hindi (Kshitij) Chapter 3 Upbhoktavad Ki Sanskriti

  • Simplified explanations of consumerism and its societal impact for better clarity.

  • CBSE-aligned answers and probable questions to aid effective preparation.

  • Helps students critically analyse socio-cultural issues.

  • Concise summaries and structured answers for efficient last-minute study.

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Conclusion

NCERT Solutions for Class 9 Hindi (Kshitij) Chapter 3, "उपभोक्तावाद की संस्कृति" by श्यामचरण दुबे, provide students with a clear understanding of the essay's critical themes, such as consumerism, societal values, and cultural impacts. These solutions not only help in mastering the chapter for exams but also encourage students to think critically about real-life issues. With accurate, CBSE-aligned answers and FREE accessibility, these resources are an excellent tool for academic success and personal growth. Download the FREE PDF today and take a confident step towards better learning.


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FAQs on NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 3 Upbhoktavad ki Sanskriti

1. कक्षा 9 के पाठ 'उपभोक्तावाद की संस्कृति' का मुख्य संदेश क्या है?

कक्षा 9 का पाठ 3, 'उपभोक्तावाद की संस्कृति', लेखक श्यामचरण दुबे द्वारा रचित एक विचारोत्तेजक निबंध है। इसका मुख्य संदेश यह है कि बाजार की शक्तियों के कारण हम कैसे विज्ञापन और दिखावे की संस्कृति के गुलाम बनते जा रहे हैं। यह पाठ हमें सचेत करता है कि हमें अपनी जरूरतों और विलासिता के बीच अंतर समझना चाहिए और अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखना चाहिए।

2. Vedantu के NCERT समाधान कक्षा 9 के हिंदी पाठ 3 को समझने में कैसे मदद करते हैं?

Vedantu के NCERT समाधान कक्षा 9 हिंदी पाठ 3 के लिए सभी प्रश्नों के सरल और चरण-दर-चरण उत्तर प्रदान करते हैं। ये समाधान CBSE के नवीनतम 2025-26 पाठ्यक्रम के अनुसार तैयार किए गए हैं। विशेषज्ञों द्वारा बनाए गए ये उत्तर छात्रों को पाठ के गहरे अर्थ, जैसे 'दिखावे की संस्कृति' और 'सामाजिक पतन' जैसे विषयों को समझने और परीक्षा में सटीक उत्तर लिखने में मदद करते हैं।

3. 'दिखावे की संस्कृति' का क्या अर्थ है, और इस पर आधारित प्रश्नों का उत्तर लिखते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

'दिखावे की संस्कृति' का अर्थ है समाज में अपनी हैसियत या आधुनिकता दिखाने के लिए अनावश्यक वस्तुओं का उपभोग करना। NCERT समाधानों के अनुसार, इस पर आधारित उत्तर लिखते समय आपको इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  • पाठ से उदाहरण दें, जैसे महंगे साबुन या टूथपेस्ट का विज्ञापन।

  • इसके सामाजिक परिणामों पर प्रकाश डालें, जैसे असमानता और अशांति।

  • लेखक के दृष्टिकोण को स्पष्ट करें कि यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों को कमजोर कर रहा है।

4. लेखक के अनुसार, 'उपभोक्तावाद की संस्कृति' हमारे जीवन को किस प्रकार नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है?

लेखक के अनुसार, 'उपभोक्तावाद की संस्कृति' हमारे जीवन पर कई नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। यह हमारे सामाजिक चरित्र को कमजोर कर रही है, नैतिक मूल्यों में गिरावट ला रही है, और लोगों में अशांति और असमानता बढ़ा रही है। हम उत्पादों का उपभोग केवल उपयोग के लिए नहीं, बल्कि अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा दिखाने के लिए कर रहे हैं, जिससे एक अंतहीन दौड़ शुरू हो गई है।

5. क्या कक्षा 9 हिंदी अध्याय 3 के लिए ये NCERT समाधान CBSE परीक्षा 2025-26 के लिए पर्याप्त हैं?

हाँ, ये NCERT समाधान CBSE 2025-26 परीक्षा के लिए पूरी तरह से पर्याप्त हैं। इन्हें CBSE के दिशानिर्देशों और अंकन योजना के अनुसार तैयार किया गया है। ये समाधान न केवल पाठ्य-पुस्तक के सभी प्रश्नों को कवर करते हैं, बल्कि मूल्य-आधारित प्रश्नों (Value-Based Questions) के उत्तर देने के लिए आवश्यक वैचारिक स्पष्टता भी प्रदान करते हैं।

6. गांधीजी ने उपभोक्तावाद के बारे में क्या विचार रखे थे और इस पाठ के संदर्भ में उनका क्या महत्व है?

गांधीजी ने उपभोक्तावाद का विरोध करते हुए सादा जीवन और उच्च विचार का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि हमें अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखना चाहिए और बाहरी दिखावे से दूर रहना चाहिए। इस पाठ के संदर्भ में उनके विचार बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे हमें एक वैकल्पिक जीवन शैली का सुझाव देते हैं जो हमारी सांस्कृतिक और नैतिक नींव को मजबूत करती है और हमें बाजार का गुलाम बनने से रोकती है।

7. उपभोक्तावाद और हमारी सांस्कृतिक पहचान के बीच क्या संबंध है? इस पर आधारित प्रश्नों का उत्तर कैसे लिखें?

उपभोक्तावाद सीधे हमारी सांस्कृतिक पहचान पर हमला करता है। यह हमें अपनी परंपराओं, मूल्यों और स्थानीय उत्पादों को छोड़कर पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण करने के लिए प्रेरित करता है। इस पर आधारित प्रश्नों का उत्तर लिखते समय, आपको यह समझाना चाहिए कि कैसे विज्ञापनों द्वारा हमारी आस्था और परंपराओं का दुरुपयोग किया जा रहा है और कैसे हम अपनी पहचान खोकर एक दिखावटी जीवन अपना रहे हैं।

8. 'उपभोक्तावाद की संस्कृति' पाठ के सभी प्रश्न-उत्तर कहाँ मिलेंगे?

आप कक्षा 9 हिंदी क्षितिज के अध्याय 3, 'उपभोक्तावाद की संस्कृति', के सभी प्रश्न-उत्तर Vedantu पर प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ दिए गए समाधान NCERT पाठ्य-पुस्तक के सभी अभ्यासों को कवर करते हैं और छात्रों को परीक्षा में बेहतर अंक लाने के लिए सही उत्तर लिखने की विधि सिखाते हैं।